22 मई, 2018 को पूरे विश्व में ‘अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस’ का आयोजन हुआ। इस वर्ष इस दिवस की थीम है ‘जैव विविधता के लिए 25 वर्षों की कार्रवाई का उत्सव ‘ (Celebrating 25 Years of Action for Biodiversity)। अंतरराष्ट्रीय जैव विविधता दिवस मनाने का निर्णय 20 दिसंबर, 2000 को संयुक्त राष्ट्र महासभा के प्रस्ताव के द्वारा हुआ था। वर्ष 1992 में इसी दिन यानी 22 मई, 1992 को नैरोबी सम्मेलन में जैविक विविधता पर अभिसमय ‘(Convention on Biological Diversity-CBD) के टैक्स्ट को स्वीकार किया गया था। इसलिए 22 मई को प्रतिवर्ष अंतरराष्ट्रीय जैव-विविधता दिवस के रूप में मनाया जाता है।
क्या है जैव विविधता?
जैव विविधता अभिसमय के अनुसार ‘जैव विविधता से तात्पर्य है सभी स्रोतों, जिनमें जमीन, समुद्री एवं अन्य जलीय पारितंत्र शामिल हैं, के सजीवों तथा पारितंत्रीय जटिलता जिनके वे हिस्सा हैं, में भिन्नता से है जिनमें प्रजातीयों के बीच विविधता और प्रजातीय तथा पारितंत्र के बीच विविधता भी शामिल है।’
जैव विविधता अभिसमय (CBD)
जैव विविधता अभिसमय पर 5 जून, 1992 को रियो पृथ्वी सम्मेलन के दौरान हस्ताक्षर आरंभ हुआ। 30 देशों की अभिपुष्टि के पश्चात यह अभिसमय 29 दिसंबर, 1993 को प्रभावी हुआ। भारत ने इस अभिसमय पर 5 जून, 1992 को हस्ताक्षर किया, 18 फरवरी, 1994 को इसकी अभिपुष्टि (रैटिफाय) की और 19 मई, 1994 को इसका पक्षकार बना। वर्ष 2018 में अभिसमय के प्रभावी होने के 25 वर्ष हो गए हैं। इस अभिसमय में कुल 42 अनुच्छेद हैं। इस अभिसमय के मुख्य उद्देश्य हैं; जैव विविधता का संरक्षण, इसके घटकों का सतत उपयोग और अनुवांशिक संसाधनों के उपयोग के लाभों का उचित एवं समान हिस्सेदारी जिसमें अनुवांशिक संसाधनों तक उचित पहुंच तथा प्रासंगिक प्रौद्योगिकियों का उचित अंतरण भी शामिल हैं।
जैव सुरक्षा पर कार्टागेना प्रोटोकॉल
जैव सुरक्षा पर कार्टागेना प्रोटोकॉल (The Cartagena Protocol on Biosafety) 29 जनवरी, 2000 को स्वीकार किया गया और 11 सितंबर, 2003 को यह प्रभावी हुआ। यह एक अंतरराष्ट्रीय समझौता है जो आधुनिक जैव प्रौद्योगिकियों के परिणामी सजीव संवर्द्धित जीवों (एलएमक्यू) के सुरक्षित हस्थालन या हैंडलिंग, परिवहन एवं उपयोग को सुनिश्चित करने का लक्ष्य लेकर चलती है ताकि जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव नहीं पड़े और मानव स्वास्थ्य को भी कोई नुकसान नहीं पहुंचे।
अनुवांशिक संसाधनों तक पहुंच पर नागोया प्रोटोकॉल
नागोया प्रोटोकॉल जिसे एबीसी प्रोटोकॉल भी कहा जाता है, अनुवांशिक संसाधनों की पहुंच व लाभ साझेदारी से संबंधित है। इस प्रोटोकॉल को जापान के नागोया में जैव विविधता अभिसमय पर पक्षकारों के 10वें सम्मेलन के दौरान (10वें कोप) 29 अक्टूबर, 2010 को स्वीकार किया गया था। यह प्रोटोकॉल 12 अक्टूबर, 2014 को प्रभावी हुआ। भारत ने इस प्रोटोकॉल पर 11 मई, 2011 को हस्ताक्षर किया और 9 अक्टूबर, 2012 को इसकी अभिपुष्टि की। भारत के लिए यह प्रोटोकॉल अति महत्वपूर्ण है क्योंकि वह अपने अनुवांशिक संसाधनों एवं उससे जुड़े पारंपरिक ज्ञान के बायोपायरेसी एवं अनौचित्य उपयोग का पीड़ित रहा है जिसे अन्य देशों में पेटेंट कराया गया है। हल्दी एवं नीम इसके उदाहरण हैं।
आईची जैवविविधता लक्ष्य
आईची लक्ष्य या टार्गेट का संबंध जैव विविधता पर दबाव को कम करते हुए इसके लाभों को सभी में बढ़ाने से है। नागोया सम्मेलन के दौरान वर्ष 2011-2020 के लिए जैव विविधता कार्ययोजना स्वीकार किया गया था जिसमें नागोया प्रोटोकॉल के अलावा आईची लक्ष्य का भी उल्लेख है। आईची लक्ष्य में मुख्य रूप से पांच रणनीतिक लक्ष्य हैं; 1. जैव विविधता नुकसान के कारणों को समझना, 2. जैव विविधता पर प्रत्यक्ष दबाव को कम करना व सतत उपयोग को बढ़ावा देना, 3. पारितंत्र, प्रजातियों एवं अनुवंशिक विविधता की सुरक्षा कर जैव विविधता स्थिति में सुधार लाना, 4. जैव विविधता एवं पारितंत्र सेवाओं से लाभों का सभी में संवर्द्धन तथा 5. साझीदारी नियोजन, ज्ञान प्रबंधन तथा क्षमता निर्माण के द्वारा क्रियान्वयन में वृद्धि।
भारत में जैव विविधता
भारत जैव-विविधता के दृष्टिकोण से एक समृद्ध देश है। विश्व के 34 जैव-विविधता हॉट स्पॉट में से चार भारत में है। इसी तरह विश्व के 17 मेगा-डायवर्सिटी (वृहद जैव वैविध्य संपन्न देश) देशों में भारत भी शामिल है। भारत के पास केवल 2.4 प्रतिशत वैश्विक भूमि है, लेकिन यह क्षेत्र कुल जैव विविधता के लगभग 7 से 8 प्रतिशत हिस्से को आश्रय प्रदान करता है। भारत के पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के एक अनुमान के अनुसार आज तक हुए सर्वेक्षणों के अनुसार भारत में विभिन्न वर्गों की वनस्पतियों की 46,340 प्रजातियां खोजी गई हैं, जिसमें से आवृतबीजी पुष्पीय पौधों की 17,643 प्रजातियां, अनावृत बीजी पौधों की 131 प्रजातियां, पर्णांगों की 1236 प्रजातियां, ब्रायोफाइटस की 2451 प्रजातियां, शैवाकों की 2268 प्रजातियां, फफूंदों की 14,585 प्रजातियां, शैवालों की 7182 प्रजातियां, वाइरस एवं बैक्टिरियां की 903 प्रजातियां अब तक खोजी गई हैं। इस प्रकार जीव जंतुओं की लगभग 91212 प्रजातियां भारत से खोजी गई हैं, जिनमें से 372 स्तनधारी 1228 पक्षी, 428 सरिसृप, 204 उभचर, 2546 मत्स्य प्रजातियां, 5042 मोलास्क, 10,107 प्रोटोजोआ एवं 57,525 कीटों की प्रजातियां सम्मिलित हैं।