भारत में दक्षिण-पश्चिम मानसून आगमन का समय 1 जून है और यह सर्वप्रथम केरल में आता है। मानसून आगमन को कई कारक प्रभावित करते हैं जैसे कि इंडियन ओशन डायपोल, ईएनएसओ (ENSO), पछुआ हवा इत्यादि। इंडियन ओशन डायपोल पश्चिमी व पूर्वी हिंद महासागर में तापांतर है वहीं प्रशांत महासागर में एल नीनो व ला नीनो के बीच दोलन को ईएनएसओ (एल नीनो साउदर्न ऑसिलेशन) कहा जाता है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) भारत में मानसून आगमन समय, प्रसार, मानसूनी वर्षा की मात्रा इत्यादि के संबंध में आधिकारिक पूर्वानुमान जारी करता है जिस पर भारत की करोड़ों आबादी निर्भर है। हालांकि हाल के वर्षों में निजी कंपनियां भी पूर्वानुमान जारी करना आरंभ की है परंतु लोगों का अभी भी आईएमडी पर भरोसा है।
हालांकि विगत दो वर्षों में दक्षिण-पश्चिम मानसून के आगमन व वर्षा की मात्रा पर आईएमडी के पूर्वानुमान पर कुछ सवाल उठाये गये हैं। आईएमडी ने 15 मई, 2020 को जारी पूर्वानुमान में कहा था कि ‘इस वर्ष केरल में दक्षिण-पश्चिम मानसून का 1 जून की सामान्य तिथि के बजाय थोड़े विलंब से आगमन होगा। इस वर्ष केरल में 5 जून को मानसून आगमन की संभावना है।’ हालांकि आईएमडी ने यह भी स्पष्ट भी किया था कि इस तिथि में चार दिनों की त्रुटि हो सकती है। उत्तर भारत में मामूली गर्मी, पश्चिमी विक्षोभ की बारंबार आवृत्ति व बंगाल की खाड़ी में अम्फान चक्रवात को विलंबित मानूसन की वजह बतायी जा रही थी। हालांकि दक्षिण-पश्चिम मानसून 1 जून को अपनी निर्धारित तिथि को ही आ गई, जिसकी पुष्टि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने बाद में की। इससे पहले वर्ष 2015 में आईएमडी के पूर्वानुमान व मानसून के वास्तविक आगमन में छह दिनों का अंतर था। वैसे वर्ष 2017 व 2018 में पूर्वानुमान सटीक रहा है (सारणी-1)।
सारणी-1: आईएमडी के पूर्वानुमान व मानसून का वास्तविक आगमन |
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वर्ष | आईएमडी पूर्वानुमान | मानसून वास्तविक आगमन |
2015 | 30 मई | 5 जून |
2016 | 7 जून | 8 जून |
2017 | 30 मई | 30 मई |
2018 | 29 मई | 29 मई |
2019 | 6 जून | 8 जून |
2020 | 5 जून | 1 जून |
स्रोतः पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय–आईएमडी-पीआईबी |
केरल में भारी वर्षा होने के पश्चात आमतौर पर लोग मानने लगते हैं कि मानसून का आगमन हो गया। इस बार भी कुछ ऐसा हुआ। परंतु आईएमडी की नजर में केरल में केवल भारी वर्षा ही दक्षिण-पश्चिम मानसून आगमन का संकेत नहीं होता। आईएमडी आधिकारिक पुष्टि के लिए कई शर्तों के पूरा होने का इंतजार करता है। द.प. मानसून के आगमन की आधिकारिक पुष्टि तब की जाती है जब केरल एवं कर्नाटक में स्थित 14 मौसम स्टेशनों में से 8 (60 प्रतिशत स्टेशनों) में लगातार दो दिनों तक 2.5 एमएम की वर्षा अनिवार्य रूप से दर्ज की जाए, विषुवत रेखा से भारत की ओर बहने वाली पछुआ हवा कतिपय ऊंचाई पर 30 से 40 किलोमीटर प्रति घंटा से बह रही हो, कतिपय ऊंचाई पर आउटगोईंग लॉन्गवेव रेडिएशन (ओएलआर) का कुछ मूल्य दर्ज किया जाये। भ्रम दूर करने के लिए कुछ विशेषज्ञ आईएमडी से अधिक सटीक स्थानीय मौसम पूर्वानुमान की अपेक्षा कर रहे हैं।
मानसूनी वर्षा की मात्रा
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने 15 अप्रैल, 2020 को जारी लॉन्ग रेंज पूर्वानुमान (एलआरएफ) में कहा था कि इस वर्ष दक्षिण-पश्चिम मानसूनी (जून-सितंबर) वर्षा दीर्घ अवधि औसत (एलपीए) का 100 प्रतिशत होगी। साथ ही आईएमडी ने सामान्य मानसून रहने का पूर्वानुमान किया। एलपीए का 96 प्रतिशत से 104 प्रतिशत को सामान्य मानसून कहा जाता है (सारणी-2)। एलपीए वर्ष 1961 से 2010 के बीच भारत में मानसूनी वर्षा का औसत है जो कि 88 सेंटीमीटर है।
सारणी-2: भारत में मानसूनी वर्षा का वर्गीकरण | |
श्रेणी | वर्षा (एलपीए का प्रतिशत) |
कमजोर | 90 प्रतिशत से कम |
सामान्य से कम | 90 से 96 प्रतिशत |
सामान्य | 96 से 104 प्रतिशत |
सामान्य से अधिक | 104 से 110 प्रतिशत |
आधिक्य | 110 प्रतिशत से अधिक |
एलपीएः 88 सेंटीमीटर (स्रोतः पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय–आईएमडी-पीआईबी) |
1 जून, 2020 को आईएमडी ने फिर से संशोधित लॉन्ग रेंज फॉरकास्ट जारी किया जिसमें भारत में एलपीए का 102 प्रतिशत वर्षा होने का पूर्वानुमान किया गया है। पिछले वर्ष के मानसूनी मौसम में आईएमडी के पूर्वानुमान से कहीं अधिक वर्षा भारत में हुयी और विगत कई रिकॉर्डों को तोड़ दिया। 15 अप्रैल, 2019 को जारी पूर्वानुमान में आईएमडी ने कहा था कि आलोच्य वर्ष के मानसूनी मौसम में भारत में एलपीए का 96 प्रतिशत वर्षा होगी जो लगभग सामान्य वर्षा का पूर्वानुमान था। परंतु वास्तव में भारत में एलपीए का 110 प्रतिशत वर्षा रिकॉर्ड की गई जो वर्ष 1994 के पश्चात सर्वाधिक वर्षा थी (चित्र-1)। यही नहीं, मानसून की वापसी भी 10 अक्टूबर को हुयी जो रिकॉर्ड है। मानसूनी वर्षा की सही मात्रा का सटीक पूर्वानुमान नहीं किये जाने के कारण आईएमडी को आलोचना भी झेलनी पड़ी है।
चित्र-1
वैसे यह सही है कि भारतीय अर्थव्यवस्था में वृद्धि के साथ ही भारत में प्रौद्योगिकी के स्तर पर भी काफी विकास हुआ है। आईएमडी ने भी इस दौरान अपनी प्रौद्योगिकी को अपग्रेड किया है और पूर्वानुमान के लिए नया मॉडल ‘सीएफएस’ (युग्मित पूर्वानुमान प्रणाली) अपनाया है। ऐसे में उम्मीद की जाती है कि दक्षिण-पश्चिमी मानसून के बारे में आईएमडी के पूर्वानुमान में त्रुटि की कम गुंजाइश रहे। हालांकि हाल में बंगाल की खाड़ी में अम्फान चक्रवात पर उसका पूर्वानुमान सही साबित हुआ है।