विश्व की 26,000 से अधिक प्रजातियां संकटापन्न : आईयूसीएन द्वारा जुलाई 2018 के प्रथम सप्ताह में जारी विश्व की संकटापन्न प्रजातियों की लाल सूची (IUCN Red List) के अनुसार विश्व की 26,000 से अधिक प्रजातियों खतरे (संकटापन्न) में है।
-आईयूसीएन द्वारा जारी लाल सूची में अब प्रजातियों की संख्या 93,577 हो गईं हैं जिनमें 26,197 सुभेद्य (Vulnerable), नाजुक (critical) या संकटापन्न (endangered) श्रेणी में वर्गीकृत हैं।
-विगत वर्ष से लेकर अब तक छह प्रजातियां विलुप्त हो चुकी हैं जिससे कुल विलुप्त प्रजातियों की संख्या बढ़कर 872 हो गईं हैं। इसके अलावा 1700 प्रजातियां नाजुक संकटापन्न (critical endangered) या संभावित विलुप्त श्रेणी में हैं।
-नई सूची में 19 प्रजातियां जो पहले से ही संकटापन्न में थीं, उन्हें संकटापन्न की ऊपरी श्रेणी में शामिल किया गया है अर्थात उन पर खतरा और बढ़ गया है। इनमें जलधारा मेढ़क ‘अंसोनिया स्मीयोगोल’ (जिसका नामकरण लॉर्ड ऑफ रिंग्स के गॉलूम के नाम पर हुआ है) भी शामिल है जो मलेशिया में पर्यटकों द्वारा फैलाए जा रहे प्रदूषण के कारण संकट में पहुंच गया है। इसके अलावा पर्यावास के नाश होने, फुकुशीमा परमाणु दुर्घटना, कृषि रसायनों के अत्यधिक प्रयोग के कारण जापान का दो केंचुआ प्रजाति तथा आस्ट्रेलिया का बार्टेली फ्रेरे कूल-शिंक नामक सरिसृप को भी संकटापन्न की उच्चतर श्रेणी में शामिल किया गया है। बार्टेली फ्रेरे कूल शिंक का पर्यावास ग्लोबल वार्मिंग के कारण छोटा होता जा रहा है जिसके कारण प्रजातियां नष्ट हो रही हैं।
-नई लाल सूची के अनुसार आस्ट्रेलिया की 7 प्रतिशत सरिसृप जिनमें छिपकली एवं सांप भी शामिल हैं, विलुप्ति के कगार पर हैं। सूची के मुताबिक आस्ट्रेलिया की सभी विशिष्ट प्रजातियां अब संकटापन्न हैं और प्रत्येक 14 में से एक पर विलुप्ति का खतरा मंडरा रहा है। आस्ट्रेलिया का ग्रासलैंड इयरलेस ड्रैगन को सुभेद्य से संकटापन्न श्रेणी में डाल दिया गया है। इसी प्रकार मिशेल वाटर मॉनिटर लिजर्ड को नाजुक संकटापन्न सूची में डाल दिया गया है। इस लिजर्ड को विश्व का सबसे बड़ा मेंढ़क, जो एक विदेशी प्रजाति है, टॉक्सिक केन टोड से खतरा है।
-हिंद महासागर के मॉरीशस एवं रियूनियन द्वीपों पर ग्रेटर मैस्केरिनी फ्लाइंग फॉक्स (Greater Mascarene flying fox,) नामक चमगादड़ प्रजाति को संकटापन्न श्रेणी में शामिल किया गया है। वर्ष 2015 से 2016 के बीच इसकी संख्या में 50 प्रतिशत की कमी आई है।
वैज्ञानिकों के अनुसार अब खतरा जलवायु परिवर्तन से ज्यादा जैव विविधता के नष्ट होने से है क्योंकि इससे पृथ्वी को स्वच्छ वायु, स्वच्छ जल, भोजन एवं स्थायी मौसम प्रणाली की इसकी क्षमता कम कर रही है। इस वजह से पृथ्वी पर प्रजातियों के नष्ट होने की स्वाभाविक दर है उससे कहीं अधिक तेजी से ये नष्ट हो रहे हैं जिसके कारण पृथ्वी छठा व्यापक विलुप्ति या सिक्स्थ मास एक्सिटिंशन (Sixth Mass Extinction) की ओर अग्रसर हो रही है।