नीति आयोग ने 14 जून, 2018 को ‘संयुक्त जल प्रबंधन सूचकांक’ (Composite Water Management Index: CWMI) जारी किया। नीति आयोग द्वारा इस सूचकांक को केंद्रीय सड़क परिवहन एवं जल संसाधन मंत्री श्री नीतिन गठकरी ने जारी किया।
यह सूचकांक जल संसाधन के कुशल प्रबंधन में राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों के प्रदर्शन को आंका गया है जिसके आधार पर वे भविष्य में इसमें सुधार कर सकेंगे।
नीति आयोग के मुताबिक यह सूचकांक केंद्र सरकार के विभिन मंत्रालयों/विभागों एवं राज्य सरकारों को जल संसाधनों के कुशल प्रबंधन के लिए रणनीति तैयार करने में भी मदद कर सकता है।
सचकांक में कुशल जल प्रबंधन के मामले में विभिन्न राज्यों/केंद्रशासित प्रदेशों की रैंकिंग 2016-17 के अध्ययन के आधार पर की गई है।
इस सूचकांक में सर्वोच्च रैंकिंग (जल संसाधन के कुशल प्रबंधन) गुजरात को दी गई है। इसके पश्चात मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक एवं महाराष्ट्र का स्थान है।
पूर्वोत्तर एवं हिमालयी राज्यों में त्रिपुरा को सर्वोच्च रैंकिंग प्रदान की गई है जबकि हिमाचल प्रदेश, सिक्किम एवं असम क्रमशः दूसरे, तीसरे एवं चौथे स्थान पर है। हालांकि यह आश्चर्यजनक है कि जल संसाधन के कुशल प्रबंधन के मामले में नीति आयोग के जिस सूचकांक में हिमाचल प्रदेश को बेहतर रैंकिंग प्रदान की गई है उसी की राजधानी शिमला इन दिनों गंभीर जल संकट का सामना कर रहा है।
इस सूचकांक में विभिन्न राज्यों की रैंकिंग निर्धारण के लिए 9 बड़े क्षेत्रों एवं 28 विभिन्न संकेतकों को आधार बनाया गया है। इनमें शामिल हैंः भूजल, जल निकायों का जीर्णोद्धार, सिंचाई, कृषि प्रक्रियाएं, पेयजल, नीति एवं शासन।
इस सूचकांक में जल संसाधन के कुशल प्रबंधन के लिए शून्य से 100 स्कोर दिए गए हैं जिनमें 100 सर्वेश्रेष्ठ प्रदर्शन को दर्शाता है। गुजरात जिसे सर्वोच्च रैंकिंग प्रदान की गई है, उसका स्कोर 76 है। वैसे अधिकांश राज्यों का स्कोर 50 से नीचे ही है जो यह दर्शाता है कि जल संसाधन के कुशल प्रबंधन में राज्य काफी पीछे हैं। दूसरी ओर पूर्वोत्तर एवं हिमालयी राज्यों में केवल त्रिपुरा एवं हिमाचल प्रदेश का ही स्कोर 50 से ऊपर है।
इस सूचकांक में जो चिंताजनक पहलू है, वह यह कि देश के जिन राज्यों में अधिक आबादी निवास करती हैं वे जल प्रबंधन के मामले में काफी पिछड़े हैं। बिहार, उत्तर प्रदेश, हरियाणा का स्कोर 38-38 है। यह गंभीर स्थिति की ओर इशारा करता है।
भारत में जल संसाधन के कुशल प्रबंधन की जरूरत क्यों है?
नीति आयोग द्वारा जारी सूचकांक के मुताबिक भारत में 60 करोड़ लोग उच्च से चरम जल दबाव का सामना कर रहे हैं। देश के तीन चौथाई परिवारों को उनकी चारदीवारी में पेयजल उपलब्ध नहीं है। अर्थात इन्हें पीने के पानी हेतु अपनी चारदीवारी से बाहर निकलना होता है। यही नहीं जो जल है भी उसका 70 प्रतिशत दूषित है तभी तो जल गुणवत्ता सूचकांक में विश्व के 122 देशों में भारत 120वें स्थान पर है। इससे भारत में उपलब्ध जल की गुणवत्ता का अनुमान लगाया जा सकता है। यह भी कि साफ जल तक अपर्याप्त पहुंच के कारण भारत में लगभग दो लाख लोग प्रतिवर्ष काल के गाल में समा जाते हैं। जैसे-जैसे भारत में आबादी बढ़ रही है वैसे-वैसे जल की मांग भी बढ़ने वाली है। नीति आयोग का अनुमान है कि वर्ष 2030 तक जल आपूर्ति की तुलना में मांग दोगुणा होने के आसार है। इससे जल संकट और गहरा सकता है। इसी परिप्रेक्ष्य में उपलब्ध जल के कुशल प्रबंधन की आवश्यकता होगी और इसके लिए बेहतर रणनीति की भी जरूरत होगी। यह रणनीति, खासतौर से राज्य सरकारों को विशेष रूप से बनानी होगी क्योंकि आखिरकार जल, भारतीय संविधान के अनुसार राज्य सूची का विषय है।