किसी ज्वालामुखी की परिभाषा शंकुकार अथवा गुंबद आकार की संरचना के रूप में दी जा सकती है, जो एक छिद्र के माध्यम से पृथ्वी के सतह पर निकले मैग्मा के परिणामस्वरूप निर्मित होती है। ज्वालामुखी सपाट ढालाकार से लेकर लम्बे और ढालू अलग-अलग आकारों के हो सकते हैं, जो उस ग्रह के निर्माण और रूपांतरण में प्रमुख भूमिका निभाते हैं, जिस पर हम रहते हैं। 80 प्रतिशत से अधिक पृथ्वी को सतह की उत्पत्ति ज्वालामुखी से हुई है, जिससे जीवन जीने और उसका विकास करने हेतु महत्वपूर्ण अवयव मिले हैं। अनगिनत ज्वालामुखी फूटने से पर्वतों, पठारों और मैदानों का निर्माण हुआ है, जिनके बाद में अपरदित होने तथा घिसने के कारण भूदृश्यों और उपजाऊ मृदाओं का निर्माण हुआ है। विश्व में 500 से अधिक सक्रिय ज्वालामुखी हैं (जो दर्ज इतिहास में कम से कम एक बार फट चुके हैं) यद्यपि कई सारे ज्वालामुखी समुद्र के भीतर छिपे हुए हैं। अत्यधिक सक्रिय ज्वालामुखी महाद्वीपों के सीमान्तों पर या उनके नजदीक मनके के डोर के समान और आधे से अधिक ज्वालामुखी प्रशान्त महासागर के आधे भाग में अर्द्धवृत्ताकार रूप में ‘आग की अंगूठी’ के समान दिखते हैं। ज्वालामुखी में उन स्थानों पर जमा होने की प्रवृत्ति दिखती है, जहां चट्टानों में भ्रंश और दरार होती हैं, जिनसे मैग्मा बाहर निकलने के रास्ते मिलते हैं, जो यह दर्शाता है कि ज्वालामुखी तथा भूकंपीय गतिविधि अक्सर एक दूसरे से नजदीकी तौर पर जुड़ी हुई है, जो समान गतिशील पृथ्वी के बलों के प्रति अनुक्रिया प्रदर्शित करती है।
पोर्ट ब्लेयर से 35 किमी दूर निर्जन बैरन द्वीपसमूह ज्वालामुखी भारत में एक मात्र सक्रिय ज्वालामुखी है, जिसका क्षेत्रफल 10 वर्ग किमी है। दो शताब्दियों तक सुप्त पड़े रहने के बाद अप्रैल 1991, दिसम्बर 1994, और मई 2005 में यह फट चुका है। इस सागर में दूसरा ज्वालामुखी द्वीपसमूह नारकांडम द्वीपसमूह का ‘बुझा हुआ’ ज्वालामुखी है जो बैरन द्वीपसमूह के उत्तर में स्थित है।
ये ज्वालामुखीय द्वीपसमूह, जिसमें से एक बुझा हुआ है, ज्वालामुखीय चाप पर अवस्थित हैं, जो उत्तर में मध्य बर्मा (म्यांमार) से दक्षिण पूर्व में सुमात्रा-जावा तक विस्तारित है जबकि यहां ज्वालामुखीय समुद्री पर्वतों की संख्या बहुत ही कम है, बैरन द्वीपसमूह से लगभग 60 किमी पूर्व एलकॉक समुद्री पर्वत तथा कार-निकोबार द्वीपसमूह से लगभग 200 किमी पूर्व सेवेल समुद्री पर्वत है, जो अभी भी समुद्री सतह के ऊपर नहीं आ पाया है। इस प्रकार भारत की मुख्य भूमि ज्वालामुखीय संकटों से लगभग मुक्त है।