पादपों की जड़ों द्वारा अवशोषित नाइट्रेट बड़े कार्बनिक अणुओं में शामिल हो जाते हैं जो कि जानवरों द्वारा खाए जाने पर उनमें अन्तरित हो जाते हैं। जिन पादपों का राइजोबियम के साथ पारस्परिक संबंध होता है, उनमें से कुछ नाइट्रोजन गांठों से प्राप्त अमोनियम आयनों के रूप में आत्मसात हो जाता है। हालांकि, सभी पादप मृदा से नाइट्रेट अवशोषित कर सकते हैं। फिर ये नाइट्रेट आयनों में बदल जाते हैं और फिर एमीनो अम्लों में संयोजित होने के लिए अमोनियम आयनों में बदल जाते हैं और अन्ततः प्रोटीन में रूपान्तरित हो जाते हैं, जोकि पादपों या उन्हें खाने वाले जानवरों के भाग बन जाते हैं। पादपों और जानवरों दोनों के अवशिष्ट और शेष बचे भाग में कार्बनिक नाइट्रोजन यौगिक होते हैं जो विघटकों द्वारा तोड़े जाते हैं तथा अमोनियम आयनों जैसे अकार्बनिक यौगिकों में परिवर्तित कर दिए जाते हैं। नाइट्रोजन में बदलने वाले जीवाणु मृदा के नाइट्रेटों में इन यौगिकों को वापस ले जाते हैं, जिन्हें पादपों द्वारा फिर से वापस प्राप्त कर लिया जाता है और एक बार फिर पारिस्थितिकी प्रणाली में वापस ले आया जाता है।
विनाइट्रीकरण वह प्रक्रिया है जो नाइट्रेट को नाइट्रोजन गैस में फिर से बदल देती है। विनाइट्रीकरण करने वाले जीवाणु जल भराव वाली मृदा में पाए जाते हैं, जहां नाइट्रोजन गैस नष्ट हो जाती है। अतः अत्यधिक सिंचाई से बचना चाहिए क्योंकि इसके कारण कृषि भूमि को नुकसान पहुंचता है।
अधिकांश मृदाओं में मौजूद जीवाणुओं की तुलना में फसलें नाइट्रेट का अधिक उपयोग कर सकती हैं। कृत्रिम रूप से उत्पादित नाइट्रोजन जोकि उर्वरकों का मूलभूत अवयव है, अब प्राकृतिक स्रोतों की तुलना में अधिक प्रचुरता से पाई जाती हैं। इस प्रकार कृषि उत्पादों की स्थिति में नाटकीय रूप से सुधार हुआ है। वस्तुतः फलीदार उत्पादों की खेती, रासायनिक खादों के निर्माण और बायोमास दहन, वाहनों, औद्योगिक संयंत्रों और मानवों द्वारा उत्सर्जित प्रदूषण जैविक रूप से उपलब्ध नाइट्रोजन का वार्षिक अन्तरण लगभग तिगुना हो गया है।
गेहूँ और चावल जैसी आधुनिक फसलों को अपनी तीव्र वृद्धि को बनाए रखने के लिए नाइट्रोजन का उच्च स्तर बनाए रखने की जरूरत पड़ती है। काटी गई फसल के साथ गयी नाइट्रोजन मृदा में वापस नहीं आ पाती है तथा किसानों को अमोनियम नाइट्रेट के रूप में उर्वरक डालने पड़ते हैं।