भारत के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले अपने व्यवसाय के रूप में मूलरूप से कृषि का चयन करते हैं। उनके लिए दूसरा उत्तम रोजगार पशुपालन के रूप में दिखता है। कृषि-मौसमों रबी, खरीफ, जायद के अलावा वर्ष का जो समय शेष बचता है उनमें वे अपने लिए कोई वैकल्पिक रोजगार ढूंढते हैं। वैज्ञानिक अनुसंधानों के द्वारा ऐसे कई विकल्प सामने रखे गये हैं जो ग्रामीणों को स्थायी या अस्थायी तौर पर रोजगार प्रदान कर सकते हैं। इनमें से ही एक है, गांव में स्वतः ही उपज जाने वाले अथवा रोपण के द्वारा उगाये गये बांस से कोयला बनाना।
बांस से बनाये गये कोयले में कार्बन की मात्रा 80 से 85 प्रतिशत होती है। इसमें 6 से 9 प्रतिशत नमी और 4.5 से 6.5 प्रतिशत राख की मात्रा होती है। इसमें प्रति किलोग्राम 6,900 से 7,000 किलो कैलोरिफिक वैल्यू मौजूद होती है। बांस से कोयला बनाने के लिए अधिकतम 16 प्रतिशत नमी वाले सूखे बांस आवश्यकता के हिसाब से चाहिये। इसके लिए भट्ठी का तापमान 400-450 डिग्री रखा जाता है। 3 मीटर व्यास वाली 10 से 12 फीट ऊंची भट्ठी के निर्माण में 6000 ईंटों की जरूरत होती है। इसके अलावा 100 किग्रा मिट्टी का गारा, 15 किलो गन्ने का सीरा या 15 किलो गेहूँ का भूसा लगता है। इसका आयतन 14 क्यूबिक मीटर और क्षमता 2.5-3.5 टन होती है। प्रति चक्रण की अवधि 5 से 7 दिन है और 25 प्रतिशत उपज बांस के कोयले के रूप में प्राप्त होती है। एक समय में एक भट्ठी पर केवल दो श्रमिक ही चाहिये।