1990 के दशक में नासा ने मंगल की परिक्रमा करने हेतु ‘मार्स ग्लोबल सर्वेयर’ नामक एक रोबोट लैंडर्स (अंतरिक्ष यान) को मंगल ग्रह की कक्षा में स्थापित किया था। नासा के ही एक अन्य अंतरिक्ष यान ‘मार्स पाथ-फाउंडर’ ने पहियेदार रोबोट वाहन ’रोवर’ को मंगल ग्रह के धरातल पर उतारा था, जिसका आकार एक माइक्रोवेव ओवन के बराबर था।
मंगल ग्रह के बारे में एकत्र तथ्यों से पता चला है कि इसका वायुमंडल विरल है और मंगल की सतह पर वायुदाब, पृथ्वी पर वायुदाब की तुलना में सौ गुना कम है। इसके वायुमंडल में ओजोन परत का आवरण उपस्थित नहीं है, इसलिये सूर्य की पराबैंगनी ’यूवी’ हानिकारक किरणें बिना किसी अवरोध के सतह तक जा पहुँचती हैं। ये किरणें मंगल की भूमि को अनउपजाऊ अथवा बंजर बनाने में प्रमुख कारक हैं।
मंगल पर जीवन होने की आशा वहाँ पर जमी हुई बर्फ और वाष्प के रूप में मिले पानी से होती है। पृथ्वी के समान भू-वैज्ञानिक लक्षणों के होने की संभावना में यह एक प्रमुख कारण है। परन्तु तरल रूप में जल की उपस्थिति के पुख्ता साक्ष्य अभी तक प्राप्त नहीं हुए हैं। रोबोट लैंडर्स और रोवर द्वारा भेजे गये मंगल के चित्रों में यह पृथ्वी के समान ही दिखता है। अमेरिकी अंतरिक्ष यान ’मेरिनर-4’ मंगल ग्रह के बारे में सफलता पूर्वक स्पष्ट जानकारी देने वाला पहला अंतरिक्ष यान था। 1965 में इसने मंगल ग्रह के निकट उड़ते हुए इसकी श्वेत-श्याम तस्वीरें उतारीं। उसके द्वारा भेजी गई इन तस्वीरों को देखने से पता चला कि मंगल ग्रह का धरातल गड्ढ़ों से युक्त था और भूमि जीवन हीन थी।
1971 में सोवियत रुस द्वारा भेजे गये अंतरिक्ष यान के मंगल ग्रह पर उतरने के 15 सेकेंड बाद ही इसका रेडियो संपर्क धरती से टूट गया था। इस घटना के कुछ महीने पश्चात् अमेरिकी अंतरिक्ष यान ’मेरिनर-9’ ने अपनी कक्षा में घूमते हुए मंगल ग्रह की कुछ अद्भूत तस्वीरें खींची। इन चित्रों में विशाल ज्वालामुखी, घाटियाँ और भौगोलिक घटकों की एक विस्तृत प्रणाली दिखाई दी। इससे ज्ञात हुआ कि मंगल ग्रह पर सदियों पूर्व पानी एक बड़ी मात्रा में मौजूद था। परन्तु इन तस्वीरों से मंगल पर जीवन होने के कोई लक्षण ज्ञात नहीं होते हैं।