हाई एल्टीट्यूड क्लाउड फिजिकल लेबोरेट्री, एचएसीपीएल की कल्पना किसी एक अवस्थिति में बादलों को लगातार मॉनीटर करने के लिए की गई थी जहाँ बादलों का आधार जमीन को छूता है। एचएसीपीएल के विचार को एक ही स्थान पर दीर्घावधि बादल भौतिकी गतिशीलता, विकिरण एवं रसायन विज्ञान प्रेक्षणों को प्राप्त करने के लिए मूर्त रूप दिया गया था क्योंकि विमान से किए गए प्रेक्षण स्व-स्थाने होते हैं और दैनिक तथा मौसमी चक्रों पर डाटा सृजित नहीं कर सकते।
एचएसीपीएल में अनवरत प्रेक्षण बादल सूक्ष्म भौतिकी, बादलों के बीच अंतःक्रिया, ऐरोसॉलों और वर्षण की प्रक्रिया तथा संबंधित गतिकी के अध्ययन के लिए लगातार डाटा प्रदान कर सकते हैं।
मौसम और जलवायु के सभी पूर्वानुमानों में प्रणाली संबंधी त्रुटियों का सर्वाधिक महत्वपूर्ण स्रोत बादलों के निर्माण में परिशुद्धता के अभाव से जुड़ा है। मौसम एवं जलवायु मॉडलों में संवहन का प्राचलीकरण हमारी इस समझ पर आधारित है कि छोटे पैमाने के बादल बड़े पैमाने के पर्यावरण से तथा ऐरोसॉल बादलों से किस तरह से अंतःक्रिया करते हैं। इसलिए 11वीं योजनावधि के दौरान भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान द्वारा एक प्रमुख शोध क्षेत्र के रूप में बादल एवं ऐरोसॉल अंतःक्रिया पर फोकस किया गया।
बादल एवं ऐरोसॉल के बीच अंतःक्रिया के अध्ययन के लिए बादल ऐरोसॉल अंतःक्रिया एवं वर्षण वृद्धि प्रयोग (सीएआईपीइइएक्स) नामक अभियान के रूप में एक विशेष राष्ट्रीय प्रयोग शुरू किया गया। उपकरणों से सुसज्जित विमानों का प्रयोग किया गया किंतु एक खर्चीला कार्य होने के कारण ये प्रचालन लंबे समय तक जारी नहीं रह सके। पश्चिमी घाटों में 1353 मीटर की ऊंचाई पर स्थित महाबलेश्वर, मानसूनी बादलों एवं भारी बारिश की घटनाओं के लगातार मानीटरन एवं अध्ययन हेतु एक आदर्श अवस्थिति उपलब्ध कराता है।
तथापि, व्यापक किस्म की मौसम वैज्ञानिक परिस्थितियों एवं वितरण की बादल सूक्ष्मभौतिकी पर डाटा प्राप्त करने के लिए यह महत्वपूर्ण था कि पर्याप्त रूप से लंबी अवधि के लिए प्रेक्षण प्राप्त करना जारी रखा जाए। ऊंचाई वाले स्टेशन पर बादल भौतिकी एवं ऐरोसॉल मापन वेधशाला की स्थापना से कई वर्षों तक ऐरोसॉल एवं मौसम वैज्ञानिक मापनों सहित बादल सूक्ष्मभौतिकी मापनों में सहूलियत होगी जिससे अलग-अलग परिस्थितियों का डाटा एकत्र करने में मदद मिलेगी। इसलिए महत्वपूर्ण वायुमंडलीय प्राचलों के अबाधित प्रेक्षण एवं मानीटरन हेतु भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान की सहायक अवसंरचना के साथ काफी ऊंचाई पर स्थित महाबलेश्वर, महाराष्ट्र में एक प्रायोगिक अवसंरचना का प्रस्ताव किया गया। महाबलेश्वर एवं पुणे दोनों स्थानों पर इस प्रयोजन हेतु अधुनातन यांत्रिकी सुविधाएं स्थापित की जानी थीं।
मानसूनी बादलों में बादल सूक्ष्मभौतिकीय एवं गतिकीय प्रक्रियाओं तथा विकिरण के विकीर्णन एवं अवशोषण के माध्यम से इन अभिलक्षणों को प्रत्यक्ष रूप से आशोधित करने तथा बादल स्थूलभौतिकीय, सूक्ष्मभौतिकीय एवं वर्षा प्रक्रियाओं को अप्रत्यक्ष रूप से आशोधित करने में ऐरोसॉल की भूमिका के बारे में काफी कम जानकारी उपलब्ध है। बादल प्रक्रियाएं उप-ग्रिड पैमाने की प्रक्रियाएं उत्पन्न करती हैं जिनका प्राचलीकरण किए जाने की जरूरत है। संख्यात्मक मॉडलों में प्राचलीकरण योजनाओं के अभिकल्पन अथवा प्रक्रियाओं का प्रस्तुतिकरण सुधारने में बादलों का स्व-स्थाने एवं सुदूर संवेदन प्रेक्षण तथा पर्यावरण के साथ जुड़ी उनकी अंतःक्रियाओं जैसे प्रेक्षण बेशकीमती हैं। बादल एवं ऐरोसॉल प्रक्रियाएं वायुमंडलीय गतिकी के साथ विभिन्न पैमानों पर निकटता से जुड़ी हुई हैं। निचले एवं मध्यवर्ती क्षोभमंडल के बीच संवहनी मिश्रण से विभिन्न जलवायु मंडलों की जलवायु संवेदनशीलता में प्रमुख अंतरों को स्पष्ट करता है।
बादल निर्माण, गठन तथा मानसून संवहन में हृस पर नियंत्रण एक बहु-पैमाने की समस्या है जिसके लिए बादलों की बहु-पैमाने की भौतिकी एवं गतिकी को समझने के लिए उपग्रह, जमीन आधार, स्व-स्थाने विमानवाहित प्रेक्षणात्मक प्रयासों के प्रयोग वाले बहुमुखी उपागम की आवश्यकता है। एचएसीपीएल में एक विस्तारित समयावधि तक एकीकृत जमीनी प्रेक्षण अन्य मुद्दों के साथ-साथ मौसम और जलवायु पर ऐरोसॉल के प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष प्रभावों, जल वैज्ञानिक चक्र पर ऐरोसॉल के प्रभाव, बादल के सूक्ष्म एवं स्थूल पैमाने के अभिलक्षणों तथा वायुमंडल की ताप गतिकीय अवस्था को समझने में सहायक हो सकते हैं।
पश्चिमी घाटों में वर्षा का निर्माण अरब सागर से नम वायु के अनिवार्य उत्थापन से होता है। इससे निचले स्तरों पर वर्षा बूंदों का निर्माण होता है जबकि पश्चिमी घाटों का अवरोधक प्रभाव निचले स्तर के मानसून जेट के भीतरी प्रदेश में प्रवेश को सीमित कर देता है। पश्चिमी घाट पर स्थित विख्यात हिल स्टेशन एवं तीर्थाटन केंद्र महाबलेश्वर, एचएसीपीएल के लिए एक बेजोड़ अवस्थिति प्रदान करता है। विशेष रूप से इस कारण से कि यहाँ 561.7 सेंमी से अधिक वर्षा होती है जबकि यहाँ से केवल 30 किमी दूर स्थित मंधार देवी में मुश्किल से ही वर्षा होती है। यह विसंगति वर्षा की चरम घटनाओं तथा सूखे के पूर्वानुमान में कौशल को सुधारने में सहायक हो सकती है।
महाबलेश्वर स्थित एचएसीपीएल इस प्रक्रिया में पहला कदम है जिसका भारत में अन्य अवस्थितियों में अनुसरण किए जाने की जरूरत है। दक्षिणी भारत में दक्षिण पश्चिमी मानसून के गलियारों में पर्याप्त ऊंचाई वाली एक अवस्थिति की तत्काल आवश्यकता है। केरल स्थित मुन्नार जो कि समुद्र तल से 2 किमी की ऊंचाई पर है, ऐसी ही एक अवस्थिति है जहाँ एक प्रयोगशाला स्थापित की जा सकती है। पूर्वोत्तर, जहाँ विश्व में सर्वाधिक वर्षा होती है, में भी इसी प्रकार की विस्तारित बादल एवं वर्षण अध्ययन सुविधा की जरूरत है जो इस इलाके की ताजी जानकारी के लिए बेहतर तैयारी में सहायक हो सकती है।
पश्चिमी हिमालयी क्षेत्र, एचएसीपीएल के लिए एक अन्य महत्वपूर्ण अवस्थिति है। धूल एवं बायोमॉस ऐरोसॉल से भरी यहाँ की गहरी घाटियाँ, इस इलाके के ऊपर भारी मानसून पूर्व शुष्कन के कारण विशिष्ट रूप से 3-4 कि. मी. के बादल आधार के साथ पर्याप्त गतिहीनता दर्शाती हैं। मानसून के दौरान बादलों में धुंध के कण भी होते हैं। इन प्रक्रियाओं को समझने के लिए एचएसीपीएल विस्तृत जानकारी प्रदान कर सकती है।