प्रश्न: जैविक खेती की ओर आपका रुझान कैसे हुआ?
डॉ महीपाल: पर्यावरण सुरक्षा, उचित पोषण एवं सतत कृषि से ही सतत विकास संभव है, इस तथ्य का पता मुझे विभिन्न साहित्य पढ़ने एवं जमीन पर कार्य करने से चल गया था। इसके लिए मैंने सोचा कि गांव में किसानों के बीच रह कर जैविक खेती की जाए। इससे जो सतत विकास के सिद्धांत हैं उन्हें अमल में लाया जा सके। इसी ध्येय को ध्यान में रखकर मैं और मेरी पत्नी एन०सी०आर० की सुविधाएं एवं चकाचौंद को त्यागकर अपने गांव बहादरपुर में आ गए।
प्रश्न: कृपाग्राम कहाँ स्थित है?
डॉ महीपाल: कृपाग्राम वस्तुतः कृपा फाउंडेशन की पहल है। यह बहादरपुर गांव , जिला सहारनपुर के रामपुर मनिहारान ब्लॉक में स्थित है। यहां आकर विभिन्न कठिनाइयों को झेलते हुए कृपाग्राम की स्थापना की और जैविक खेती करने, किसानों को प्रदर्शन करने एवं प्रशिक्षण देने का कार्य शुरू कर दिया। फार्म को स्थापित हुए एक वर्ष पूर्ण हो गया है।
प्रश्न: आपके द्वारा अपनायी गयी जैविक खेती विशिष्ट कैसे है और क्या पद्धति अपनायी जाती है ?
डॉ महीपाल: हम जैविक खेती करने में नीमास्त्र, कृपास्त्र एवं संयोजनस्त्र और पूसा डीकंपोजर का प्रयोग करते हैं। नीमास्त्र, नीम की पत्तियों को उबाल कर बनाया जाता है। कृपास्त्र, हुक्के में पीने का तम्बाकू, तेज लाल मिर्च एवं सड़ी हुई लस्सी के मेल से बनता है। अगर हम इन दोनों को यानी नीमास्त्र और कृपास्त्र को मिला दें तो उसे संयोजनस्त्र कहते हैं। ये दोनों शस्त्र फंगस एवं कीट पतंगों के जानी दुश्मन हैं। जरूरत पड़ने पर इनमे नीम की निम्बोली का तेल मिला देते हैं जिससे ये शस्त्र और भी प्रभावी हो जाते हैं।
प्रश्न: आस–पास के किसानों की क्या प्रतिक्रिया रही है और क्या वे इस ओर आकर्षित हो रहे हैं ?
डॉ महीपाल: कृपाग्राम के माध्यम से हम मुख्यतः पांच ग्राम पंचायतों में कार्य कर रहे हैं जिनका नाम सकतपुर (इसी ग्राम पंचायत का बहादरपुर राजस्व ग्राम है), साढौली हरिया, नसरतपुर, बुड्ढ़ा खेडा व मदनुकी है। इन ग्राम पंचायतों में धीरे-धीरे जैविक खेती की ओर चर्चा हो रही है। कृपाग्राम की चर्चा हो रही है। कुछ किसानों ने इन शस्त्रों को प्रयोग किया और लाभ उठाया। इसके मैं दो उदाहरण देना चाहता हूँ। प्रथम, कृपाग्राम के पास ही एक किसान है जिसने नीमास्त्र का प्रयोग बैंगन फसल में किया। वह नीमास्त्र के प्रभाव से इतना प्रभावित हुआ कि उसने रूटीन में जो पहले कीटनाशक अंग्रेजी दवाइयां इस्तेमाल करता था उन सभी को त्याग दिया है। नीमास्त्र को प्रयोग करने से उसकी इनपुट लागत भी नहीं के बराबर रह गयी है। दूसरा उदाहरण हमारे पास अहमदपुर गांव का है। वहां पर इन शस्त्रों का इस्तेमाल अमरूद के बाग में किया गया। मात्र एक बार के छिड़काव करने से लगभग 60% प्रभाव सकारात्मक हुआ। पहले एवं बाद की दोनों स्थितियों को पाठक देख सकते हैं। इन शस्त्रों के प्रयोग का नतीजा यह हुआ कि अहमदपुर के किसान ने स्वयं भी शस्त्र बनाने शुरू कर दिए क्योंकि उनको इसकी मात्रा बहुत अधिक चाहिए। इसलिए किसान ने स्वयं ही से शस्त्र बनाने शुरू कर दिए। यह नया आयाम हमारे लिए खुशी की बात है क्योंकि हमारी स्थानीय समझ एवं पदार्थों को इस्तेमाल करके खेती में लागत को कम कर सकते हैं।
प्रश्न: प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी ‘लोकल‘ को ‘वोकल‘ की बात कर रहे हैं, इस बारे में आपकी क्या राय है?
डॉ महीपाल: परंतु मेरा मानना है कि केवल ‘लोकल’ वस्तुओं के उत्पादन को ही बढ़ावा देने की जरूरत नहीं है वरन् लोगों को इन ‘लोकल’ वस्तुओं को खरीदने के लिए भी प्रोत्साहित करने की जरूरत है। मतलब यह कि ‘लोकल उत्पादन’ के लिए ‘वोकल’ होने के साथ-साथ ‘लोकल खरीद’ के लिए भी ‘वोकल’ होने की आवश्यकता है। तभी इस पहल को हम सफल होते हुये देख सकते हैं। कृपाग्राम में भी हम स्थानीय उत्पादों का विभिन्न शस्त्रों के माध्यम से उपयोग कर रहे हैं और नमूना के तौर पर लोगों में निःशुल्क वितरित कर रहे है और उनको उत्साहित कर रहे हैं कि वे स्वयं इनका इस्तेमाल करे तथा विस्तार माध्यमों के द्वारा इसकी और पहुंच सुनिश्चित कराये।
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