हवाई द्वीप का किलाउआ ज्वालामुखी (Kilauea volcano) एक बार फिर से सक्रिय हो गया है। इससे निकले लावा हवा में सैकड़ो मीटर ऊपर उछल रहे हैं। यूएसजीएस के मुताबिक इस ज्वालामुखी का पिघला चट्टान (मैग्मा) 3 मई, 2018 को धरातल पर आना आरंभ हुआ। यूएसजीएस ने उड्डयन क्षेत्र के लिए ‘ऑरेंज’ रंग की चेतावनी जारी की है। इसका मतलब यह है कि इसके विस्फोट की संभावना बढ़ गयी है। वैसे किलाउआ ज्वालामुखी ‘उच्च खतरा’ वाले श्रेणी में वर्गीकृत है।
किलाउआ ज्वालामुखी : विशिष्ट तथ्य
संयुक्त राज्य भूवैज्ञानिक सर्वेक्षण यानी यूएसजीएस के मुताबिक किलाउआ हवाई द्वीप पर स्थित सबसे युवा ज्वालामुखी है। लीलानी इस्टेट यहीं स्थित है। स्थलाकृतिक रूप से पहले इसे मौना लोआ का ही हिस्सा समझा जाता था परंतु विगत कुछ दशकों के शोध के पश्चात अब यह सिद्ध हो चुका है कि यह एक स्वतंत्र ज्वालामुखी है। मैग्मा निकास की इसकी अपनी प्रणाली है जो धरातल से 60 किलोमीटर तक गहरी है। इसे विश्व के सर्वाधिक सक्रिय ज्वालामुखियों में से एक माना जाता है। किलाउआ, ज्वालामुखी देवी ‘पेले’ का गृह माना जाता है। वर्ष 1952 से इसमें 34 बार विस्फोट हो चुका है और जनवरी 1982 से पूर्वी भ्रंश क्षेत्र में विस्फोट गतिविधि निरंतर जारी है।
ज्वालामुखी
ज्वालामुखी धरातल के उन प्राकृतिक छिद्रों को कहते हैं, जिनसे होकर लावा तथा गैसें बाहर निकलती हैं। वारसेस्टर के अनुसार, ‘ज्वालामुखी प्रायः गोलाकार या लगभग गोलाकार छिद्र होता है, जिससे होकर पृथ्वी में अत्यन्त तप्त भूगर्भ से गैस, जल, तरल लावा एवं चट्टानों के टुकड़े आदि भूपटल पर निःसृत होते हैं। ज्वालामुखी क्रिया के दौरान गर्म लावा, तप्त गैसें, उष्ण जल एवं अन्य पदार्थ एक दरारनुमा गोलाकार छिद्र से बाहर निकलते हैं, जिसे ज्वालामुखी नली कहते हैं। इसके ऊपरी भाग को ज्वालामुख या क्रेटर कहते हैं। इसके बड़े आकार को काल्डेरा कहते हैं।
हवाई तुल्य ज्वालामुखीः इनमें तरल लावा की प्रधानता होती है, तथा गैसों की कमी रहती है। इनका लावा गर्तनुमा क्रेटर से निर्मित लावा झीलों से निकलता है। इसका लावा केशों की भाँति उड़ता हुआ दृष्टिगत होता है। इस प्रकार की अधिकांश ज्वालामुखी हवाई द्वीप में पायी जाती है, जिसके नाम पर इसका नामकरण किया गया है।
किलाउआ ज्वालामुखी विस्फोट के कारण
ज्वालामुखी क्रिया के निम्नलिखित कारण प्रमुख हैं;
(1) भू-तापीय एवं रासायनिक क्रियाओं के कारण पृथ्वी के अन्दर उष्मा की उत्पत्ति होती है, जिसके कारण भूगर्भ के पदार्थों का आयतन बढकर वे धरातल पर आने को प्रयासरत् रहते हैं।
(2) रेडियोधर्मी तत्वों के विखण्डन से ऊर्जा उत्पन्न हो जाती है तथा तापमान अधिक बढने पर भूपटल की चट्टानें पिघलकर मैग्मा का रूप धारण कर ज्वालामुखी क्रिया का कारण बन जाती हैं।
(3) भूगर्भ में पायी जाने वाली गैसें अतितापन के कारण तरल हो जाती हैं, परिणामस्वरूप आयतन बढ़ जाता है तथा ज्वालामुखी उत्पन्न हो जाती है।
(4) भूमिगत जल अत्यधिक ताप के कारण वाष्प बनकर फैलता है तथा ज्वालामुखी उद्गार को जन्म देता है।
(5) पृथ्वी धीरे-धीरे ठण्डी होकर संकुचित हो रही है जिस कारण भूपरतों का केन्द्र की ओर दबाव बढ़ रहा है, जिससे भी ज्वालामुखी क्रिया सम्भव होती है।