हम सभी अल नीनो भौगोलिक परिघटना से सुपरिचित हैं। राष्ट्रीय महासागरीय एवं वायुमंडलीय प्रशासन, यूएस (एनओएए) के अनुसार ‘अल नीनो मध्य एवं पूर्वी उष्णकटिबंधीय प्रशांत महासागर में महसागरीय सतह तापमान के उष्ण होने से जुड़ी प्राकृतिक तौर पर घटित होने वाली जलवायु प्रणाली है।’ यह प्रणाली प्रत्येक दो से सात वर्षों पर उत्पन्न होती है और महासागरीय तापमान 0.5 डिग्री बढ़ जाती है। यह प्रणाली विश्व भर की मौसम प्रणाली, महसागरीय स्थिति एवं समुद्री मात्स्यिकी को बड़े स्तर पर प्रभावित करती है। भारत की जलवायु भी इससे अछूती नहीं है। अल नीनो परिघटना के उत्पन्न होने से भारत में मानसूनी वर्षा के कमजोर होने की आशंका रहती है। हालांकि हमेशा ऐसा नहीं होता जैसे कि वर्ष 1997-98 की अल नीनो प्रणाली शताब्दी में सबसे मजबूत थी परंतु उस वर्ष भारत में औसत से अधिक वर्षा हुयी। वैसे आमतौर पर यह माना जाता है कि अल नीनो से भारत में कम वर्षा होगी और परिणामस्वरूप भारत को सूखा का सामना करना पड़ेगा।
जब प्रशांत महासागर के गर्म होने से उत्पन्न अल नीनो सुदूर भारत की जलवायु को प्रभावित कर सकती है, तब जरा कल्पना कीजिए कि ऐसी ही परिघटना हिंद महासागर में घटित होने लगे, तो क्या होगा? परंतु यह हकीकत होने वाली है, यदि हाल के एक वैज्ञानिक अध्ययन की मानें तो। जर्नल साइंस एडवांसेस में मई 2020 में यूनिवर्सिटी ऑफ टैक्सास एवं ऑस्टिन के वैज्ञानिकों का एक शोध आलेख प्रकाशित हुआ है। इसमें कहा गया है कि यदि तापवृद्धि की मौजूदा प्रवृत्ति जारी रहती है तो वर्ष 2050 में ही हिंद महासागर में अल नीनो उत्पन्न हो सकता है। इस अध्ययन में वैज्ञानिकों ने वर्ष 2019 के एक अध्ययन का भी सहारा लिया है जिसके कई लेखक मौजूदा शोध अध्ययन से जुड़े हैं। वर्ष 2019 के अध्ययन में कौस्तुभ थिरूमलई के नेतृत्व वाले वैज्ञानिकों ने आज से 21000 वर्ष पहले के ‘फोराम्स’ (forams) नामक अति सूक्ष्म समुद्री जीवन के खोल में हिंद महासागर अल नीनो के छिपे होने का प्रमाण प्राप्त किया था। यह वह हिम युग था जब पृथ्वी कहीं अधिक शीतल थी।
मौजूदा अध्ययन में शोधकर्त्ताओं ने, जिनमें श्री थिरूमलई सह-लेखक हैं, जलवायु अनुकरण (क्लाइमेट सिमुलेशन) का विश्लेषण किया और मौजूदा प्रेक्षणों से मेल किया। इनके मुताबिक ग्रीनहाउस तापवृद्धि एक ऐसी पृथ्वी का निर्माण कर रही है वह आज से काफी अलग होगी। यह भी कि आज की तुलना में हिंद महासागर में जलवायु के दोलन की प्रबल संभावना है। अध्ययन में कहा गया है कि आज पश्चिम से पूर्व की ओर पवन के बहने की मंद गति की वजह से महासागरीय ताप स्थिति स्थिर है परंतु वैश्विक तापवृद्धि पवन की दिशा को बदल सकती है और फिर प्रशांत महासागर की तरह हिंद महासागर में भी तापमान अल नीनो एवं ला नीना के बीच दोलन करता रहेगा।
भारत सहित हिंद महासागरीय तटीय देशों में चरम मौसमी घटनाओं की बढ़ती आवृत्ति व तीव्रता इस बात का प्रमाण है कि वैश्विक तापवृद्धि जनित जलवायु परिवर्तन अपना प्रभाव दर्शाना आरंभ कर दिया है। ऐसे में हिंद महासागर में फिर से अल नीनो का उत्पन्न हो जाना आश्चर्य नहीं होगा।