अमेरिकी अंतरिक्ष एजेंसी ‘नासा’ के उपग्रह से लिए गए तस्वीरों में अरब सागर के तटों पर ‘नोक्टिलुका सिंटिलैंस’, जिसे ‘सी-स्पार्कल’ भी कहा जाता है, की बहार देखी गई है। इन्हीं चित्रों के आधार पर एक अमेरिकी शोध प्रकाशित हुआ है जिसमें ‘नोक्टिलुका सिंटिलैंस बहार’ (Noctiluca scintillans blooms) को जलवायु परिवर्तन की वजह से हिमालय में बर्फ का पिघलना को जिम्मेदार ठहराया गया है।
शोधकर्त्ताओं के अनुसार हिमालयन-तिब्बत पठार क्षेत्र में हिम के निरंतर पिघलने से महासागरीय तल गर्म हो रहा है जो नोक्टिलुका सिंटिलैंस का विस्तार का कारण बन रहा है। नासा की उपग्रहीय तस्वीरों में अरब सागर में नोक्टिलुका में वृद्धि को हिमनदों के पिघलने तथा कमजोर शीतकालीन मानसून से जोड़कर देखा गया है। दरअसल, आमतौर पर हिमालय से बहने वाली शीतकालीन मानसूनी पवनें महासागरों के तल को ठंडा कर देती हैं। एक बार तल ठंडा होने पर, पानी नीचे चला जाता है जिसकी जगह नीचे का पोषण समृद्ध पानी ले लेता है जो फाइटोप्लैंक्टन को आधार प्रदान करता है। फाइटोप्लैंक्टन खाद्य श्रृंखला का प्राथमिक उत्पादक है। ये फाइटोप्लेंक्टन गर्म व सूर्य प्रकाश में महासागर के पोषण समृद्ध ऊपरी परत में जीवित रहते हैं। परंतु हुआ अब यह है कि हिमालय में हिमनद व हिम कम होने लगे हैं जिससे यहां से बहने वाली पवनें अधिक गर्म व नम हो गईं जो उपर्युक्त प्रक्रिया को बाधित कर रही हैं। इस वजह से महासागरीय तल पर कम पोषक तत्व प्राप्त होते हैं। इसी का फायदा नोक्टिलुका सिंटिलैंस उठाते हैं जो सूर्य प्रकाश या पोषक तत्वों पर निर्भर नहीं हैं वरन् दूसरे जीवों को खाकर जीवित रह सकते हैं।
उल्लेखनीय है कि नोक्टिलुका सिंटिलैंस मिलीमीटर आकार का प्लैंक्टोनिक जीवन है जो तटीय जलों में फलता-फुलता है। यह प्रकाश संश्लेषण की क्रिया संपन्न करने के साथ-साथ आहार के लिए अन्य जीवनों को निशाना बनाते हैं। चिंता की बात यह है कि ये शैवाल, जो कि प्रतिवर्ष उत्पन्न होते हैं और कुछ महीनों तक अस्तित्व में रहते हैं, अरब सागर की खाद्य श्रृंखला में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले अन्य प्लैंक्टन को बाहर कर देते हैं। ये प्लैंक्टन उन मछलियों को जीवन देते हैं जिन पर तटीय क्षेत्र के लगभग 15 करोड़ मछुआरों की आजीविका निर्भर है।
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