भारतीय कृषि जिन चुनौतियों का मुकाबला कर रही है उनमें लगातार वृद्धि हो रही है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन की वर्तमान बहस में, मौजूदा प्रौद्योगिकियों का इस्तेमाल करने वाली गहन कृषि की धारणीयता पर सवाल खड़े किए जा रहे हैं। दीर्घावधि बदलाव और मौसम संबंधी उग्र परिस्थितियों की बढ़ती आवृति, कृषि क्षेत्र पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। बार-बार बरसात न होने तथा बाढ़ एवं सूखे जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण फसल न होने, खाद्य असुरक्षा, अकाल, जान-माल का नुकसान, सामूहिक पलायन एवं राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था में नकारात्मक वृद्धि हो सकती है।
चक्रवातों के लिहाज से, भारत विशेष रूप से सुभेद्य है क्योंकि इसकी जनसंख्या की भारी प्रतिशतता ऐसे समुद्रतटीय जिलों में रहती है जो चक्रवातों के मार्ग में पड़ते हैं।
कृषि के लिए मौसम सम्बंधी विशेष पूर्वानुमान किसानों को जरूरी मौसम वैज्ञानिक जानकारी प्रदान करते हैं जिससे किसानों को निर्णय लेने में सहूलियत होती है। विशेष पूर्वानुमानों के लिए जरूरतें मौसम तथा फसल के अनुसार बदलती रहती है और इन्हें सामान्य रूप से पौध रोपण, रासायनिक अनुप्रयोगों, वानिकी आदि के लिए जारी किया जाता है। उग्र परिस्थितियों के बारे में जारी किए गए विशेष पूर्वानुमान निम्नवत हैं :
उष्णकटिबंधीय चक्रवात (उत्तर भारतीय महासागर) के मार्ग गहनता, संरचना, बदलाव एवं लैंड फॉल प्रक्रिया (पवन एवं हवा का झोंका, वर्षा एवं तूफान प्रबलता आदि);
उष्णकटिबंधीय चक्रवातों के कारण भारी वर्षा एवं आंधी, दक्षिण पश्चिमी एवं उत्तर पूर्वी मानसून, कम दबाव के क्षेत्रों तथा आइटीसीजेड माइग्रेशन एवं पार्वतिकी;
भारी संवहन से जुड़ी तड़ित वृष्टि (थंडरस्टॉर्म) और ओला वृष्टि, भीषण गर्मी एवं शीत तथा कुहरा।