भौगोलिक विशेषताओं से युक्त किसी स्थान की आकारिकी, अक्षांश व देशान्तरीय विस्तार के अनुसार स्थिति, इससे सम्बद्ध भौगोलिक आकृतियों यथा – पर्वतों, नदियों आदि का मापन व निर्धारण मानचित्रण कहलाता है।
वर्तमान काल में देशों-प्रदेशों तथा उनके अंदर स्थित विभिन्न भौगोलिक संरचनाओं वन प्रदेशों, तटीय भूमि, जल संसाधन क्षेत्रों, खनिज संसाधन क्षेत्रों, कृषि भूमि, जलवायु, धरातल के उच्चावच को मानचित्रण के द्वारा एक संक्षिप्त स्वरूप प्रदान कर संकेतों के माध्यम से इनका अध्ययन करना सरल हो गया है। मानचित्रण की कला विभिन्न विषयों के सरल अध्ययन हेतु एक उपयोगी माध्यम है।
मानचित्रण की कला अत्यन्त प्राचीन है। पुरा-काल में मानचित्रण के लिए भौगोलिक संरचनाओं का प्रयोग संकेतों के रूप में किया जाता था, लेकिन अब दूर-संवेदी उपग्रहों के द्वारा खींचे गये चित्रों का प्रयोग कर स्थान विशेष को उसके अक्षांश व देशान्तरीय विस्तार के अनुसार निरूपित किया जाता है। दूरियाँ नापने के लिए मीटर स्केल पैमाने का उपयोग किया जाता है। नदी अथवा जलसंसाधन, पर्वत अथवा अन्य भौगोलिक प्रदेशों आदि को रेखाओं, विभिन्न रंगों एवं संकेतकों के माध्यम से प्रदर्शित किया जाता है। लघु आकार को नक्शों में रेखाओं और बिन्दुओं का उपयोग कर किसी स्थान की विशेषताओं को मानचित्रण की कला द्वारा दिखाया जाता है। कुछ विशिष्ट भू-आकृतियों की स्थिति को स्पष्ट करने के लिए नियत स्थान पर तारे, वर्ग अथवा त्रिभुज के संकेतों भी प्रयोग किया जाता है।
किसी स्थान के मानचित्र से हमें पूर्व से पश्चिम और उत्तर से दक्षिण दिशा की ओर उसके क्षेत्रफल एवं विस्तार का ज्ञान होता है। इस स्थान से अन्य स्थानों के बीच की दूरी और एक स्थान से दूसरे स्थान के बीच फासले का ज्ञान होता है। सूर्योदय तथा सूर्यास्त के समय का ज्ञान होता है। ऋतुओं के आगमन और उनके समापन का ज्ञान होता है। मानसून की उत्पत्ति, उसके आने और जाने का समय तथा अवधि, उसकी प्रबलता अथवा क्षीणता की अवस्था, स्थान पर उसके मौसमी प्रभाव आदि का ज्ञान होता है। जलवायु सम्बन्धी मानचित्रण की कला से हमें ज्ञात होता है कि वर्षा की स्थिति के अनुसार किस क्षेत्र का कृषि उत्पादन कैसा रहेगा। सिंचाई के लिए पर्याप्त वर्षा जल कहाँ पर उपलब्ध होगा और किस क्षेत्र के सूखाग्रस्त रहने की आशंका है। एक मानचित्र के अंतर्गत तथ्यों की सामयिक एवं सुनिश्चित रूप-रेखा को स्पष्ट करने के लिए गोलकों, मॉडलों तथा मानक रेखाओं को निर्मित कर इनका ज्ञानपूर्ण उपयोग किया जाता है।
निर्मित किये गये प्रत्येक मानचित्र का अपना एक विशेष उद्देश्य होता है। कुछ मानचित्र सामान्य अभिरूचियों जैसे आवास क्षेत्र, यातायात, वनस्पति एवं वन सम्पदा, अपवाह प्रणाली एवं धरातलीय उच्चावच को प्रदर्शित करने के लिए बनाये जाते हैं। वहीं, कुछ मानचित्रों के द्वारा विशेष प्रकार की अभिरूचियां प्रदर्शित की जाती हैं। यथा-मृदा के अनुसार क्षेत्रों का निरूपण, जनसंख्या का घनत्व, उद्योगों की स्थापना, नदियों की स्थिति के अनुसार बाँधों व नदी घाटी परियोजनाओं की स्थापना, कृषि क्षेत्रों की स्थिति के अनुसार खाद्यान्न अथवा फल-सब्जी उत्पादन की दशा आदि का चित्रण।
मानचित्रण की कला के लक्षणों और इसकी उपयोगिता को ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि ‘मानचित्र किसी विषय सम्बन्धी सामग्री का अध्ययन करने के लिए एक ऐसा संभावनापूर्ण माध्यम है जो विषय सम्बन्धी विशेषताओं के ज्ञान प्रदाय अध्ययन को रेखाओं, बिन्दुओं, रंगों और अन्य संकेतकों के माध्यम से संभव करता है।’
मानचित्र के बारे में फिन्स तथा ट्रिवार्था का कथन है, ‘मानचित्र धरातल के आलेखी निरूपण होते हैं।’
मांक हाउस का कहना है, ‘एक निश्चित परिणाम के अनुसार धरातल के किसी हिस्से के भौगोलिक लक्षणों के समतल सतह पर निरूपण को मानचित्रण की कला कहते हैं।’ यहाँ पर समतल सतह का अर्थ कागज के चौकोर टुकड़े से लगाया जा सकता है।
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