डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद

कार्यकारी संपादक,

निदेशक,
परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट

‘यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवता । यत्रैतास्तु न पूज्यन्ते सर्वास्तत्राफलाः क्रिया।।’

अर्थात जहां नारी की पूजा होती है वहां ईश्वर का वास होता है और ईश्वर वहां विचरण करते हैं। वहीं जिस जगह नारी की पूजा नहीं होती है वहां किया गया कोई कोई भी कार्य असफल होता है। अर्थात वहां कार्य में सफलता नहीं मिलती है। मनुस्मृति, जो कि एक विवादित ग्रंथ रहा है, का उपर्युक्त कालजयी श्लोक तात्कालिक भारतीय समाज के संदर्भ में ही लिखा गया होगा परंतु यह आज भी उतना ही, या यूं कहें कि कहीं अधिक प्रासंगिक है। हालांकि विडंबना यह है कि हमारे देश में देवताओं की संख्या विश्व में किसी भी देश से कहीं अधिक होगी और प्रायः घरों में किसी न किसी भगवान की मूर्ति जरूरी मिल जाएगी, परंतु इस बात की गारंटी नहीं है कि उसमें देवता का वास हो ही क्योंकि हमने महिलाओं का सम्मान जो करना छोड़ दिया है, यदि उपर्युक्त श्लोक पर विश्वास करें तो। तभी तो आए दिन अखबारों में देश के किसी न किसी कोने से बलात्कार की खबरें छपी मिल ही जाती हैं। आठ माह की बच्ची तक को नहीं छोड़ा जाता। बाल अधिकार एनजीओ सीआरवाई के अनुसार भारत में प्रत्येक 15 मिनट पर एक बच्चा यौन अपराध का शिकार होता है। आखिर क्यों हमारा समाज, हमारी सोच इतनी स्खलित हो गई है। लोगों के मन में भय पैदा करने के लिए कानून में संशोधन कर बलात्कारियों के लिए फांसी की सजा का भी प्रावधान किया गया परंतु ऐसा प्रतीत होता है कि कुत्सित मानसिकता वाले अपराधियों ने भय पर भी विजय प्राप्त कर लिया है और राम के देश में ही उनकी रणनीति ‘भय बिन होय न प्रीत‘ असफल होती सिद्ध हो रही है। दरअसल यह हमारी पौरुष बर्चस्व वाली मानसिकता है जो नारी को हमेशा अपने से कमजोर समझने व उसे अपने अधीन रखने की सदियों की प्रवृत्ति से ग्रसित है जिससे आज भी हम निकल नहीं पाए हैं। यही कारण है कि जन्म से पहले से ही महिलाएं भेदभाव का शिकार हो जाती हैं। भ्रूण हत्या, बाल हत्या, दहेज हत्या के नाम पर महिलाएं आजीवन हिंसा का शिकार होती रहती हैं। वर्ष 2017-18 के आर्थिक सवेक्षण, जिसे इस बार अर्थव्यवस्था में लैंगिक मुद्दे को रेखांकित करने के लिए ‘गुलाबी रंग’ दिया गया था, में ‘‘गायब हो गई महिलाएं‘ शीर्षक के तहत कहा भी गया है कि भारत की आबादी से 63 मिलियन महिलाएं गायब हैं और कन्या भू्रण हत्या, बीमारी, उपेक्षा व अपर्याप्त पोषण के कारण प्रतिवर्ष सभी आयु समूह में 20 लाख लड़कियां गायब हो जाती हैं। यह भी कि 21 मिलियन यानी 2 करोड़ 10 लाख अवांछित लड़कियां हैं। निश्चित रूप से यह रिपोर्ट चौकाने वाली नहीं है वरन्् हकीकत बयान करने वाली है। जुलाई 2018 के अंतिम सप्ताह में देश की राजधानी दिल्ली में तीन बच्चियों की भूख से मौत गायब होती लड़कियों संबंधी उपर्युक्त रिपोर्ट को और अधिक प्रमाणिकता प्रदान करती है। वैश्वीकरण के दौर में जब हम आधुनिकता का लबादा ओढ़ लिए हों और खुद को विश्व की सबसे तेज गति से विकास करने वाली अर्थव्यवस्था की उपमा को बार-बार दुहराने में थकते नहीं हों तो दूसरी ओर जब महिलाओं को मंदिर में प्रवेश करने के लिए न्यायालय में लड़ाई लड़नी पड़ती हो तो भला ऐसी आधुनिकता किस काम की, ऐसी उपमा का गौरव गान किसलिए। विश्व आर्थिक मंच की ग्लोबल जेंडर गैप रिपोर्ट 2017 में भारत की 108वीं रैंकिंग हमारी आधुनिकता व हमारी सोच की पोल खोल देती है। निश्चित रूप से हमें इस पर न केवल गंभीरता से सोचने की जरूरत है वरन्् इसके लिए उत्तरदायी कारकों की तह तक जाकर वास्तविक समाधान  भी खोजने की जरूरत है। ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’ के स्लोगन को मूर्त रूप देने की जरूरत है।

उपर्युक्त जिन विषयों एवं मुद्दों की चर्चा की गईं हैं वे लैंगिक मुद्दे हैं और ‘भूगोल और आप’ के इस अंक में इन मुद्दों को विभिन्न आलेखों के माध्यम से उठाया गया है और उसके पीछे निहित कारणों के साथ-साथ उनके समाधान ढूढ़ने के प्रयास भी किए गए हैं। इनके अलावा विकास व पर्यावरण से जुड़े कई मुद्दों को भी पूर्व की तरह जगह दी गईं हैं परंतु हैं ये प्रासंगिक। मसलन् पर्यावरण नीतिशास्त्र एक आधुनिक विषय है जिस पर आलेख प्रकाशित की गईं हैं। इसी तरह जल संकट के मौजूदा दौर में सूखा प्रबंधन भी विचारणीय विषय है जिसके लिए महाराष्ट्र का एक गांव आदर्श प्रस्तुत करता है। सूखा प्रबंधन पर प्रकाशित आलेख इस पर विस्तार से चर्चा करता है।

छात्रों एवं परीक्षार्थियों की जरूरतों के मद्देनजर विभिन्न अंतरराष्ट्रीय प्रोटोकॉल एवं अभिसमयों पर विशेष सामग्री प्रस्तुत की गईं हैं जो आपके लिए काफी उपयोगी सिद्ध हो सकती हैं।

इन विशिष्टताओं से युक्त यह अंक आपको निश्चित रूप से पसंद आएगा।

धन्यवाद!