डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद
कार्यकारी संपादक,
निदेशक,
परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट
विगत कुछ माह काफी उथल-पुथल वाला रहा है, विशेष रूप से भारत के लिए। इस अवधि में कुछ ऐसी घटनाएं घटी हैं जो ‘भूगोल’ को ‘इतिहास’ बना दिया तो कुछ ऐसे उत्साहवर्द्धक परिणाम सामने आए जो विकास व पर्यावरण में बेहतर संतुलन के उदाहरण बनें। जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 की समाप्ति व राज्य का दो हिस्सों में विभाजित हो जाना जम्मू कश्मीर के मौजूदा भौगोलिक संरचना को इतिहास बनाने जैसा ही था। अनुच्छेद 370 को समाप्त कर भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने अपने वर्षों के एजेंडा को मूर्त रूप दिया। वहीं राज्य को दो हिस्सों में बांटकर लद्दाख को कश्मीर के दबाव से मुक्त कर स्वतंत्रा रूप से विकास करने का सुअवसर प्रदान किया गया। हालांकि अनुच्छेद 370 की समाप्ति से पहले जिस तरह से कश्मीर को शेष भारत से संचार दृष्टिकोण से पंगु किया गया, और लोगों को उनके मूल अधिकारों से वंचित किया गया उस पर सवाल जरूर पैदा किए गए, खासकर भारत के लिबरल समूहों द्वारा। परंतु यह भी परिपक्व भारतीय लोकतंत्रा की विशिष्टता व मजबूती ही है कि यहां सब तरह के विचारों को अभिव्यक्ति का मौका दिया जाता है। यही वजह है कि अंतराष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान के हंगामे के बावजूद चीन को छोड़कर कोई भी देश उसका समर्थन करने में दिलचस्पी नहीं ली। यह अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत द्वारा बनाई गई विश्वसनीयता ही है जो देशों को पाकिस्तान पर विश्वास करने से रोकता है। अनुच्छेद 370 की समाप्ति के पश्चात प्रधनमंत्री ने जम्मू-कश्मीर को विकास के नए मार्ग पर ले जाने के प्रति आश्वस्त किया है। अब सरकार का दायित्व बनता है कि वह अपनी इस प्रतिबद्धता को हकीकत में बदले, विशेष रूप से स्थानीय लोगों को विश्वास में लेकर।
जब विश्वास व प्रतिबद्धता की बात आती है तो भला हम इसरो एवं इसके वैज्ञानिकों को कैसे भूल सकते हैं। 15 जुलाई, 2019 को जब चंद्रयान-2 के प्रक्षेपण को कुछ मिनटों पहले टाल दिया गया तो मीडिया में कई तरह के सवाल पैदा किए गए। यहां तक कहा गया कि अब यह मिशन दिन नहीं बल्कि महीनों के टल गया है। परंतु इसरो के वैज्ञानिकों ने आंशिक झटके को चुनौती देते हुए एक सप्ताह के भीतर ही चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव पर लैंड कराने के लिए चंद्रयान-2 प्रक्षेपित कराने में सपफलता हासिल की। अब इंतजार है इसके चंद्रमा पर उतरने की। चंद्रयान की तरह की ही सफलता भारत को जैव विविध्ता संरक्षण में भी प्राप्त हुयी। 29 जुलाई, 2019 को जब भारत में बाघ गणना के चौथे चक्र के परिणाम जारी किए गए तो संरक्षकों के लिए खुशी का ठिकाना नहीं रहा। चार वर्षों में ही भारत में बाघों की संख्या में 33 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की खबर, एक बड़ी उपलब्धि् से कम नहीं थी, खासकर ऐसे समय में जब विविध कारणों से वैश्विक स्तर पर जैव विविध्ता का नष्ट होने व आईयूसीएन लाल सूची में और अध्कि प्रजातियों के संकटापन्न होने की खबरे छपती रहती हैं। बाघ, जो कि खाद्य श्रृंखला में सबसे उफपर है, हमारे पारितंत्रा के स्वास्थ्य का अच्छा संकेतक है। यदि विकास के साथ-साथ पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी हमें सपफलता मिल रही है, तो इसका मतलब है कि हम विकास एवं पर्यावरण के बीच बेहतर संतुलन स्थापित करने में बहुत हद तक सपफल रहे हैं। परंतु इस प्रयास को हमें अन्य जंतुओं के संरक्षण में भी जारी रखने की जरूरत है, खासकर लघु जीव-जंतुओं के संरक्षण में, जो बाघ की तरह सरकार या संरक्षकों का ध्यान उतना आकर्षित नहीं कर पाते।
विधयी स्तर पर भी ‘अच्छे दिन’ देखने को मिले। विगत 20 वर्षों में संसद् का बजट सत्रा सर्वाध्कि उत्पादक रहा। लोकसभा में 30 से अध्कि विध्ेयक पारित किए गए। याद कीजिए उन दिनों को जब हम राज्यसभा व लोकसभा के हंगामे के कारण बारंबार स्थगित होने की खबरों से तंग आ चुके थे और कुछ हद तक हमारा इस व्यवस्था से मोहभंग भी होने लगा था। लेकिन पिफर से इस व्यवस्था पर हमारा विश्वास मजबूत हो गया है। हालांकि यह भी सही है कि आज विपक्ष कापफी कमजोर हो चुका है और कई विधेयकों पर जितनी चर्चाएं होनी चाहिए, उतनी नहीं हो पा रही है। इस संदर्भ में प्रधनमंत्री मोदी का कथन कि ‘विपक्ष को अपनी संख्या को लेकर परेशान होने की जरूरत नहीं है, उनका हर शब्द सरकार के लिए मूल्यवान है’, बहुत महत्व रखता है। ऐसे में विपक्ष को जनता के निर्णय को स्वीकार कर अपना कर्तव्य प्रजातंत्रा को मजबूत करने में निभाना चाहिए।