डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद

कार्यकारी संपादक,

निदेशक,
परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट

प्राकृतिक परिघटनाएं प्राकृतिक हैं और वे सदियों से आती रही हैं और आती भी रहेंगी। परंतु अधिकांश मामलों में यह प्राकृतिक परिघटना यदि प्राकृतिक विपदा का स्वरूप ग्रहण कर ली है या कर लेती है तो इसके लिए दोषी प्रकृति नहीं वरन् मानव ही है। वैसे यह भी सही है कि कभी-कभी प्राकृतिक घटनाएं इतनी गहन होती हैं कि वह आपदा का कारण बनती हैं जैसे कि वर्ष 2010 में लद्दाख में बादल का फटना परंतु हाल की जो प्राकृतिक आपदाएं रही हैं उसे विपदा बनाने में मानव ने प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से योगदान दिया है। यदि हम प्रकृति की निरंतरता को बनाए रखने वाले प्राकृतिक प्रवाल, मैंग्रोव, वन या पहाड़ को नुकसान पहुंचाते हैं तो वास्तव में हम उन प्राकृतिक अवरोधकों को समाप्त कर रहे होते हैं जो हमें सुनामी, बाढ़, चक्रवात, सूखा, भूस्खलन या अन्य खतरों से रक्षा करते हैं। इसी प्रकार शहरी क्षेत्रों में प्राकृतिक जल भंडारण व जल निकासी प्रणाली की जिस तरह से उपेक्षा कर रहे हैं उससे हाल के वर्षों में भारत के शहरी क्षेत्रों ने भीषण बाढ़ का सामना किया। वर्ष 2015 का चेन्नई का बाढ़ इसका उदाहरण है। भूकंप का मामला थोड़ा अलग है क्योंकि इसे हम रोक नहीं सकते परंतु उससे होने वाली जन-धन की हानि को जरूर रोक सकते हैं। कहा भी जाता है कि भूकंप लोगों को नहीं मारता वरन् मकानें मारती हैं। यह अभिकथन हमें आपदा पूर्व की तैयारी व मुस्तैदी की ओर इशारा करता है जो आपदा प्रबंधन के हिस्सा हैं। वस्तुतः प्राकृतिक आपदाओं को मानव के लिए विपदा होने से रोकने के लिए बेहतर आपदा प्रबंधन जरूरी है। आपदा प्रबंधन केवल आपदा  के उपरांत का बचाव व पुनर्निर्माण ही नहीं है वरन् आपदा से पूर्व के भी कई चरण हैं। हालांकि हमारे यहां आपदा प्रबंधन नीति बनाई जा चुकी है और राष्ट्रीय स्तर पर राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण तथा राज्य स्तर पर राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण भी है। 
विगत दो दशकों में आपदा प्रबंधन के क्षेत्र में भारत की नीति में परिवर्तन में भी आया है। अब राहत व पुनर्वास के साथ निवारण, शमन व मुस्तैदी पर भी सैद्धांतिक स्तर पर बल दिया जा रहा है। आपदा जोखिम न्यूनीकरण को विकास प्रक्रिया से भी जोड़ा जा रहा है। इनका प्रभाव भी देखा जा रहा है। हालांकि इसके बावजूद भारत के आपदा प्रबंधन में अभी कतिपय सीमाएं हैं। इंटरनेशनल डिजास्टर डेटाबेस के अनुसार वर्ष 2017 में आपदाओं के कारण भारत में 2291 लोगों की मौत हो गई जो कि विश्व में सर्वाधिक है। इसी प्रकार आपदाओं के कारण भारत में प्रभावित लोगों की संख्या 22.33 मिलियन थी। यह भी विश्व में सर्वाधिक है। यह सही है कि भारत विश्व की दूसरी सर्वाधिक आबादी वाला देश है, ऐसे में प्रभावित लोगों की संख्या अधिक होना स्वाभाविक है। परंतु चीन की आबादी भारत से अधिक होने के बावजूद वहां आपदाओं के कारण मरने वाले लोगों की संख्या 498 थी। संयुक्त राज्य अमेरिका की आबादी भी कम नहीं है और वहां हमेशा हरिकेन दस्तक देता रहता है, इसके बावजूद वहां वर्ष 2017 में आपदाओं से होने वाले मौतों की संख्या 288 थी। हताहतों की संख्या हमें हमारी आपदा प्रबंधन नीति में निहित कुछ खामियों की ओर इशारा करती है। 
दरअसल आपदा प्रबंधन नीतियों में आपदा के दौरान समाज के सर्वाधिक कमजोर वर्गों यथा; गरीब, अपवंचित, महिलाएं, बच्चे, विकलांग व वृद्ध जनों को सुरक्षा प्रदान करने के कार्य को भी शामिल किए जाने की जरूरत है। चूंकि आपदाओं के प्रति पहला प्रत्युत्तर स्थानीय लोगों द्वारा ही दी जाती है, ऐसे में स्थानीय समुदाओं को आपदा प्रबंधन के बारे में आरंभिक ज्ञान दिए जाने की जरूरत है। इसी प्रकार आपदा के दौरान व आपदा के पश्चात सीखे गए सबक से समुदायों को अवगत कराना जरूरी है। 
वैश्विक तापवृद्धि व जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में अचानक बाढ़, सूखा, चक्रवात, भूस्खलन जैसी परिघटनाओं की आवृत्ति में वृद्धि की संभावना है, वहीं दूसरी ओर विकास की गतिविधियों भी जारी रहेंगी, ऐसे में भविष्य में बेहतर आपदा प्रबंधन ही प्राकृतिक परिघटना को भयंकर प्राकृतिक विपदा में बदलने से रोक सकता है।