डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद
कार्यकारी संपादक,
निदेशक
परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट
प्रिय पाठकों,
कुछ ऐसी भौगोलिक व प्राकृतिक परिघटनाएं होती हैं जो बताकर नहीं आती और इन्हें हम टाल नहीं सकते जैसे कि भूकंप, सूनामी, चक्रवात, ज्वालामुखी विस्पफोट इत्यादि। परंतु हम इनसे होने वाले जान-माल की हानि को जरूर टाल सकते हैं। हाल के वर्षों में चक्रवातीय तूपफान के प्रभावों को कम करने में सपफलता भी हासिल हुयी है जिसमें वैज्ञानिक प्रबंध्न की महत्ती भूमिका रही है। वहीं दूसरी ओर कुछ ऐसी परिघटनाएं भी हैं जिन्हें घटित होने से टाला जा सकता है और जो घटित होने से पहले बार-बार चेतावनी भी देती रहती है परंतु इसके बावजूद हम इन्हें अनसुना/अनदेखा कर देते हैं। उन चेतावनियों को हम महज वैज्ञानिकों की बौ(क जुगाली समझकर उपेक्षा कर देते हैं। परंतु यही उपेक्षा जब हकीकत का रूप ले लेती है तब हम नींद से जागते हैं। वह भी महज हेडलाइंस जानने के लिए। खामियाजा तो उन स्थानीय लोगों को भुगतान करना पड़ता है जिनके लिए ‘विकास’ का बहाना बनाकर संवेदनशील पारितंत्रों को नष्ट किया जा रहा है। यहां हम ‘चमोली हादसा’ की बात कर रहे हैं। 7 पफरवरी, 2021 को नंदा देवी में रैणी गांव के पास भूस्खलन या हिमनद पफटने से आयी अचानक बाढ़ से ट्टषिगंगा नदी पर ट्टषिगंगा पावर प्रोजेक्ट पूरी तरह बह गया जबकि आगे धैलीगंगा पर तपोवन बांध् भी प्रभावित हुआ और यह संपादकीय लिखे जाने तक 60 से अध्कि लोगों की मौत की पुष्टि हो चुकी थी। 100 से अध्कि लोग अभी भी गायब हैं। तपोवन क्षेत्रा में आसपास के 13 गावों को जोड़ने के लिए जो पुल बनाया गया था वह भी बह गया। ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ये मानवीय निर्माण कार्य या विकास कार्य किनके लिए किये गये? यही नहीं नीति घाटी में आयी प्रलय के पश्चात ट्टषि गंगा के मुहाने पर एक बड़ी झील बन गई है जिसमें तकरीबन 50,000 क्युबिक मीटर पानी होने का अनुमान लगाया है जो एक अकस्मात बाढ़ का कारण बन सकता है। गौरतबल है कि यह नंदा देवी नेशनल पार्क का क्षेत्रा है जो एक बायोस्पफेयर रिजर्व व यूनेस्को विरासत स्थल भी है। जाहिर है कि यह अति-संरक्षित है जहां मानवीय गतिविध्यिं नहीं के बराबर होनी चाहिये। अभी वैज्ञानिक हिमनद के गिरने व घाटी में झील बनने के पश्चात की बाढ़ या पिफर नंदा देवी पर हिमनद के नीचे की जमीन गायब होने से पिघले हिमनद से बनी झील में स्पफोट के बीच कारण खोजने में लगे हैं। आश्चर्य करने वाली बात तो यह है कि यह हादसा सर्दी में हुयी हैं जो और हैरान करने वाली है। वैज्ञानिकों के मुताबिक हिमनद स्पफोट की परिघटना गर्मियों में होती हैं। हिमनद एवं हिम चादर का नुकसान जलवायु परिवर्तन के प्रमुख प्रभावों में से एक है। वर्ष 2019 की आईपीसीसी रिपोर्ट में हिमालय-हिंदुकुश क्षेत्रा में माध्य तापमान में बढ़ोतरी का अनुमान लगाया गया था। मौजूदा हादसा इसकी पुष्टि करता हुआ दिखाई देता है। इस दृष्टिकोण से देखें तो चमोली हादसा महज एकल व अलग-थलग हादसा नहीं है। केदारनाथ हादसा, कैलिपफोर्निया के जंगलों में आग, पोलर वर्टेक्स व टैक्सास का अंध्कारमय हो जाना, आस्ट्रेलिया का बुशपफायर, बंगाल की खाड़ी का चक्रवाती तूपफान अम्पफान, अप्रफीका व भारत में कीट हमले कहीं न कहीं एक-दूसरे से संपृक्त हैं।
उपर्युक्त परिघटनाएं यह भी स्पष्ट करती हैं कि जलवायु परिवर्तन का खतरा वास्तविक है और यह महज वैज्ञानिक जुगाली भर नहीं है। यदि हम इससे आगे जाते हुये जूनॉटिक रोगों को भी इसमें शामिल कर लें तो कुल मिलाकर यही निष्कर्ष निकलता है कि हमने कोई सबक नहीं सीखा है। सबक सीखना तो दूर, हम अपना पफुट प्रिंट उन क्षेत्रों में भी बढ़ा रहे हैं जो प्राकृतिक सीमाओं को लांघती हैं। चारधम परियोजना रूपी विकास कार्य के नाम पर पिफर से उसी हिमालयी क्षेत्रा में हजारों पेड़ों को काटा जा रहा है। यह उन लोगों को उत्तराखंड के कई प्रिस्टीन इकोसिस्टम में भीड़ बढ़ाने का आमंत्राण है जिन्होंने मैदानी इलाकों में ‘प्राकृतिक’ नाम की कोई चीज नहीं छोड़ी है। पिफर तो हमें और हादसों के लिए तैयार ही रहना चाहिये।
वैसे उपर्युक्त निराशाजनक स्थितियों के बीच विगत एक वर्ष में सकारात्मकता के भी दर्शन हुये हैं। कोविड-19 लॉकडाउन में इस पर्यावरणीय सकारात्मकता के दर्शन हुये। इस लॉकडाउन से एक बात तो स्पष्ट हो गई थी कि बहुत सारी पर्यावरणीय चिंताओं, जिनमें जैव विविध्ता ह्रास भी शामिल है, का समाधन अनावश्यक मानवीय गतिविध्यिं में कमी करके की जा सकती है। समुद्री मार्गों पर कार्गो जहाजों की आवाजाही बंद होने से वहां व्हेल एवं डॉल्पिफन को कौतुहल करते कैमरे में कैद किया गया जिनके लिए आवाज जीवन के लिए अनिवार्य है, शोर नहीं। इसी तरह कार्बन उत्सर्जन में भी कमी दिखाई दी। परंतु जैसे ही मानव जीवन पटरी पर लौटा समस्याएं पिफर से प्रकट होनी आरंभ हो गई। यह इसी ओर संकेतित करता है कि मानव गतिविध्यिं हीं समस्या को जन्म दे सकती हैं और मानवीय प्रयास ही इनका समाधन भी खोज सकता है।
‘भूगोल और आप’ का यह संयुक्तांक आपको जरूर पसंद आएगा।