डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद

कार्यकारी संपादक,

निदेशक,
परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट

प्रिय पाठकों,

यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि मानव जाति का सामना एक असाधारण समय से हुआ है। इससे पहले कभी भी किसी महामारी/पैंडेमिक की पहुंच भौगोलिक और सामाजिक दृष्टिकोण से दुनिया के सभी हिस्सों तक नहीं हुयी। यह केवल यही दर्शाता है कि दुनिया एक बड़ा गांव है और तकनीकी व संचार प्रगति की वजह से, लगभग हर देश जुड़ा हुआ है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की टाइमलाईन के अनुसार चीन ने 31 दिसंबर, 2019 को हुबेई प्रांत के वुहान में निमोनिया के मामलों की सूचना दी, जिसे अंततः ‘नोवेल कोरोनावायरस’ के रूप में पहचाना गया। 13 जनवरी, 2020 को कोविड-19 का पहला मामला, चीन से बाहर, थाईलैंड में पाया गया और कुछ ही समय में यह पूरे यूरोप, अमेरिका और एशिया में पफैल गया। संपादकीय लिखे जाने तक, लगभग 100 दिनों में दुनिया के लगभग सभी देश कोविड-19 से प्रभावित हैं, संक्रमित मामले 17 लाख को पार कर गए हैं, और एक लाख से अध्कि लोगों की मौत हो चुकी है। कोविड-19 की अभूतपूर्व पहुंच की तुलना में इसकी पूर्ववती सार्स (एसएआरएस) और मर्स (एमईआरएस) कमोबेश स्थानिक थीं।

वायरस का संक्रमण का चीन से पफैला परंतु आज इसका सर्वाधिक कहर अमेरिका में देखा जा रहा है। वैसे बहुत से लोगों को पता नहीं है कि संयुक्त राज्य अमेरिका पहले से ही इन्फ्रलुएंजा संकट का सामना कर रहा है। यूएस सेंटर पफॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) की नवीनतम फ्रलुव्यू निगरानी रिपोर्ट कहती है कि इस इन्फ्रलुएंजा मौसम में अमेरिका में 18 जनवरी, 2020 तक फ्रलू के 15 मिलियन मामले सामने आए थे, 140,000 लोगों को अस्पताल में भर्ती किया गया था और 8200 लोगां की मौत हो चुकी थी।

दुखद बात तो यह है कि एक ओर जहां विश्व कोरोनावायरस से अभी लड़ ही रहा है, और इससे निकलने की कोशिश कर रहा है, वहीं दूसरी ओर अफ्रीकी देशों में इबोला के रूप एक और चुनौती दस्तक दे दी है। नौ अप्रैल, 2020 को कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य (डीआरसी) के बेनी शहर में इबोला वायरस रोग के एक नए मामले की पुष्टि हुई। 10 अप्रैल 2020 तक पुष्टि की गई और संभावित मामलों की संख्या 3456 हो गई और 2276 लोगों की मौत हो चुकी है। इबोला वायरस रोग (ईवीडी), जिसे पहले इबोला रत्तस्रावी बुखार (म्इवसं भ्ंमउवततींहपब भ्मअमत) के नाम से जाना जाता था, गंभीर होने के साथ घातक बीमारी है जो मनुष्यों और अन्य प्राइमेट्स को प्रभावित करती है। यह वायरस जंगली जानवरों (जैसे चमगादड़, प्रोक्युपाइन और गैर-मानव प्राइमेट्स) से लोगों में पफैलता है, और पिफर संक्रमित लोगों के रत्त, स्राव, अंगों या अन्य शारीरिक तरल पदार्थों के प्रत्यक्ष संपर्क के माध्यम से और इन तरल पदार्थों से दूषित सतहों और सामग्रियों (जैसे बिस्तर, कपड़े) के साथ मानव बस्तियों में पफैलता है।

ईवीडी मामले की औसत मृत्यु दर लगभग 50 प्रतिशत है। विगत संक्रामक प्रकोपों में मृत्यु दर 25 प्रतिशत से 90 प्रतिशत के बीच रही है। मध्य अफ्रीका के दूरस्थ गांवों में, उष्णकटिबंधीय वर्षावनों के पास ईवीडी का पहला मामला सामने प्रत्यक्ष हुआ था। पश्चिम अफ्रीका में 2014-2016 का प्रकोप, वर्ष 1976 में इबोला वायरस की पहली खोज के पश्चात अब तक का सबसे बड़ा और सबसे जटिल प्रकोप था। इस प्रकोप में पूर्ववर्ती सभी प्रकोपों की तुलना में सर्वाध्कि मामले और सर्वाध्कि मौतें दर्ज की गईं थीं। इसका प्रसार विभिन्न देशों के बीच भी हुआ। गिनी से आरंभ होकर यह पड़ोसी सिएरा लियोन और लाइबेरिया की भू-सीमाओं में भी प्रवेश किया। यह माना जाता है कि टेरोपोडिडाई परिवार के चमगादड़ (प्रफुट बैट) इबोला वायरस के प्राकृतिक मेजबान (होस्ट) हैं।

कोरोनावायरस संक्रमण के क्रम में वैश्विक स्तर पर एक महत्वपूर्ण दृश्य या परिघटना देखने को प्राप्त हुआ। इससे पहले कभी भी नर्सों के महत्व का एहसास नहीं हुआ था। परंतु आज वे पूरी दुनिया में अग्रीम पंक्ति की कोरोना योद्धा (कौरोना वैरियर्स) बन गईं हैं। इसलिए, वर्ष 2020 को नर्सों और दाइयों का अंतरराष्ट्रीय वर्ष के रूप में मनाये जाने से अधिक सामयिक भला क्या हो सकता है। 1 जनवरी, 2020 से नर्स और दाइयों के अंतरराष्ट्रीय वर्ष की शुरुआत, इन महत्वपूर्ण स्वास्थ्यकर्मियों की संख्या बल में कमी को उजागर करने का एक प्रमुख वैश्विक प्रयास है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने नर्सों और दाइयों के कार्यों को सराहने के लिए 2020 का चयन इसलिए किया क्योंकि यह आधुनिक नर्सिंग की जन्मदात्री, फ्रलोरेंस नाइटिंगेल के जन्म की 200वीं वर्षगांठ है। नर्स और दाई स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं। ये वे लोग हैं जो माताओं और शिशुओं की देखभाल में जीवनरक्षक प्रतिरक्षण और स्वास्थ्य सलाह देने में वृ) लोगों की देखभाल में और आम तौर पर रोजमर्रा की आवश्यक स्वास्थ्य जरूरतों को पूरा करना में अपना जीवन समर्पित करती हैं। वे अपने समुदाय में स्वास्थ्य देखभाल का अक्सरहां प्रथम, और एकमात्र केंद्र होती हैं। यदि विश्व को 2030 तक सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज प्राप्त करना है तो 9 मिलियन अध्कि नर्सों और दाइयों की जरूरत है।

देशव्यापी लॉकडाउन लागू करके कोविड-19 के प्रसार को नियंत्रित करने के मामले में भारत बहुत अच्छा काम कर रहा है। हालांकि, प्रथम 21 दिनों से परे लॉकडाउन का विस्तार करते समय, सूक्ष्म क्षेत्रों के भीतर कतिपय चुनिंदा छूट प्रदान की अपेक्षा की जा रही थी, विशेष रूप से उन क्षेत्रों में जहां कोविड-19 का कोई मामला प्रकाश में नहीं आया है या बहुत कम मामले दर्ज किए गए हैं। लघु निर्माण, फिनिशिंग कार्य इत्यादि को सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग), मास्क पहनने और स्वच्छता बनाए रखने के स्पष्ट दिशानिर्देशों के साथ अनुमति दी जा सकती है। रबी फसलें खेतों में तैयार हैं, जिन्हें लॉकडाउन से छूट दिये जाने की अपेक्षा थी। सरकार ने इस ओर कुछ हद तक ध्यान दिया भी है।