डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद
कार्यकारी संपादक,
निदेशक
परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट
प्रिय पाठकों,
यह प्रत्यक्ष है कि आज विश्व, विशेष रूप से भारत कई चुनौतियों से घिर हुआ है। आज भारत कोरोनावायरस संक्रमण के मामले में विश्व में दूसरे स्थान पर पहुंच गया है। साथ ही हर दिन 80,000 से अधिक मामले सामने आ रहे हैं। इससे यह तो स्पष्ट हो जाता है कि यह अब भारत के सभी कोनों में अपना पांव पसार चुका है। चिंता की बात यह है कि अलग-थलग जिंदगी जीने वाले ग्रेटर अंडमानी जनजाति भी इसकी चपेट में आ गये हैं जिनकी कुल आबादी महज 59 हैं। दूसरी ओर ये डेटा यह भी स्पष्ट कर देता है कि लॉकडाउन से जिस परिणाम की अपेक्षा की गई थी वह प्राप्त नहीं हुयी। लॉकडाउन की वजह से कोरोनावायास का वक्र या कर्व तो फ्रलैट नहीं हुआ, भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर जरूर फ्लैट हो गई। वित्त वर्ष 2020-21 की प्रथम तिमाही (अप्रैल-जून) में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर -23.9 प्रतिशत रही जो वर्ष 1996 से जब से तिमाही गणना आरंभ हुयी, न्यूनतम स्तर है। इससे सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि भारतीय अर्थव्यवस्था की क्या गति है। केवल कृषि क्षेत्र में ही सकारात्मक संकेत दिख रहा है परंतु भारत की जीडीपी में इसका योगदान पांचवें हिस्से से कम रह गया है। इसलिए संपूर्ण 2020-21 की जीडीपी के भी नकारात्मक रहने की ही आशंका है।
दूसरी ओर यदि सामरिक स्तर पर देखें तो, वहां भी स्थिति चिंताजनक बनी हुयी है। पैंडेमिक व अर्थव्यवस्था की संकटमय स्थिति के साथ चीन के साथ वास्तविक नियंत्राण रेखा पर तनाव बना हुआ है। गलवान घाटी में 20 सैनिकों की शहादत के पश्चात भी स्थिति में कोई अधिक परिवर्तन नहीं हो पाया है। वैसे चीन की आक्रामकता के पीछे कई वजहें हो सकती है। एक तो आंतरिक स्तर पर वहां के राष्ट्रपति शी जिनपिंग के खिलाफ कुछ हद तक असंतोष पनपना आरंभ हो गया है तो दूसरी ओर कोरोनावायरस के बारे में विश्व स्वास्थ्य संगठन से तथ्य छिपाने की वजह से भी वैश्विक स्तर पर दबाव बढ़ गया है और अब तो अंतरराष्ट्रीय जांच भी चल रही है। इसी का परिणाम हांगकांग सुरक्षा कानून, आस्ट्रेलिया के साथ व्यापार विवाद, अमेरिका के साथ विवाद, दक्षिण चीन सागर में विवाद व जापान के साथ विवाद दिख रहा है। इस पूरे मामले में आपूर्ति श्रृंखला के स्तर पर चीन पर वैश्विक निर्भरता व इससे जुड़ी समस्याएं सामने आयी हैं। यही वजह है कि जापान की पहल पर भारत, आस्ट्रेलिया एवं जापान एक वैकल्पिक आपूर्ति श्रृंखला की स्थापना पर विचार कर रहे हैं जिससे चीन पर निर्भरता को कम किया जा सके। दूसरी ओर इंडो-पैसिपिफक में भी हलचल बढ़ गयी है। मालाबार युद्धाभ्यास जो अब तक भारत, अमेरिका एवं जापान तक सीमित रही है और भारत, आस्ट्रेलिया को इसमें शामिल करने के प्रति आशंकित रहा है, अब उस नीति में परिवर्तन की संभावना है। कतिपय समाचारों में यह बात उभरकर आयी है कि अब आस्ट्रेलिया को भी इस अभ्यास में शामिल किया जाएगा। इससे भारत, अमेरिका, आस्ट्रेलिया एवं जापान के बीच ‘क्वाड’ गठन की संभावना प्रबल हो गयी है। प्रफांस के पश्चात अब जर्मनी ने भी इंडो-पैसिपिफक के लिए रणनीति बनायी है। इन सभी तथ्यों से स्पष्ट हो जाता है कि चीन की नीतियां के प्रति विश्व आशंकित हो गई है और विश्व की शांति व्यवस्था को उससे खतरा उत्पन्न हो गया है।
वैसे उपर्युक्त सभी मामलों में एक बात तो और स्पष्ट है कि भारत को अपनी आर्थिक क्षमता बढ़ानी होगी। आर्थिक स्थिति मजबूत होने पर ही भारत अपनी सामरिक स्थिति को मजबूत कर सकता है। केवल सैन्य व्यय ही नहीं वरन् डिजिटल स्तर पर, विनिर्माण के स्तर पर, अनुसंधान एवं विकास के स्तर पर व्यय बढ़ाने की जरूरत है जिसमें निजी क्षेत्रों की भूमिका बढ़ जाती है। आशा है कि सरकार अर्थव्यस्था को मौजूदा संकट से निकालने में सपफल रहेगी परंतु इसके लिए यदि ऐसे विशेषज्ञों से भी सुझाव लेने में परहेज नहीं करना चाहिए जो उसकी विचारधारा से सहमत नहीं है या उसकी नीतियों के आलोचक रहे हैं।
‘भूगोल और आप’ का मौजूदा संयुक्त अंक आगामी प्रारंभिकी परीक्षाओं के लिए अति उपयोगी है। आशा है यह आपको पसंद आएगा।