डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद
कार्यकारी संपादक,
निदेशक,
परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट
आमतौर पर हम सभी अपनी आय के हिसाब से अपना बजट बनाते हैं और उसी अनुरूप अनुशासित रहने को सोचते हैं। पर हकीकत में कुछ समय पश्चात हम खुद उस दायरे बाहर आ जाते हैं क्योंकि बाद की परिस्थितियां के अनुसार हमें अपना निर्णय लेना होता है। विलियम फीदर का यह कथन कि ‘बजट हमें यह बताता है कि हम क्या वहन नहीं कर सकते, लेकिन यह हमें उसे खरीदने से नहीं रोकता’, इसी की पुष्टि करता है। सरकारें भी जो बजट पेश करती हैं, वह भी इसके अनुशासन में नहीं बंधी रहती है। इसका एक प्रमुख उदाहरण एफआरबीएम एक्ट के लक्ष्य हैं। वर्ष 2003 के बाद से ही इस एक्ट के तहत निर्धारित राजकोषीय घाटा एवं राजस्व घाटा के लक्ष्यों को अभी तक प्राप्त नहीं किया जा सका है और इसमें संशोधन किए जाते रहते हैं। इसके अलावा विभिन्न मदों के लिए जो आवंटन किए जाते हैं उसे अंतिम दो महीनों में खर्च करने की जल्दबाजी भी यही सिद्ध करता है कि अनुमान सही नहीं लगाए जाते। वैसे इन अभिकथनों का यह भी मतलब नहीं है कि बजट महज औपचारिकता है या इसकी अधिक महत्ता नहीं रह गई है। आज के सूचना प्रौद्योगिकी युग में, जहां स्मार्ट फोन एवं ब्रॉडबैंड की पहुंच गांवों तक हो गई है, लगभग प्रत्येक भारतीय की नजर इस पर होती है। सच तो यह है कि सत्तारूढ दल की राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं के साथ आम लोगों की आकांक्षाओं का भी प्रतिनिधित्व करता है बजट। सरकार भी चाहती है कि अपनी भी अपेक्षा पूरी हो जाए और किसी की उपेक्षा भी नहीं हो। तभी तो अंतरिम बजट भी, जो महज ‘वोट ऑन अकाउंट’ है सरकार द्वारा पूर्ण बजट के रूप में पेश किए जाने लगा है। हाल में प्रस्तुत अंतरिम बजट इसका ताजा उदाहरण है जिसमें प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (पीएम-किसान) व प्रधानमंत्री श्रम-योगी मानधन वृहद पेंशन योजना जैसी महत्वपूर्ण घोषणाओं के साथ आयकर छूट सीमा को बढ़कर 5 लाख रुपए तक कर दिया गया गया। यह अलग बात है कि इन घोषणाओं का लाभ शायद ही मिल पाता है। ठीक उसी तरह जिस तरह हम साल भर अधिक पढ़ाई नहीं करें और परीक्षा के समय दो दिन खूब बढ़ें। परिणाम क्या होता है इसका अंदाजा आसानी से लगाया जा सकता है। ये तो हुई बजट प्रस्तुति की बात। परंतु जिस बजट को वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत किया जाता है वह कई महीनों तक सैकड़ों लोगों के वैधानिक नियमों के अधीन परिश्रम करने का प्रतिफल होता है। इसे कई प्रक्रियाओं से गोपनीय तरीके से गुजरना पड़ता है। इस क्रम में संवैधानिक प्रावधानों एवं संसदीय पंरपराओं के अधीन काम किया जाता है। आज जो बजट प्रस्तुत किया जाता है वह 70 वर्षों से अधिक की विकास परंपरा का परिणाम है। भले ही बजट घोषणाएं सभी लोगों की आंकाक्षाओं को पूरी नहीं करती हो, भले ही इससे बहुसंख्यक लोगों को अक्सरहां निराशा हाथ लगी हो, इसके बावजूद यदि लोग इसका इंतजार करते हैं और सुनते हैं या देखते हैं तो यह लोकतंत्र में हमारी बढ़ती आस्था व विकास का परिणाम है और बजट की सबसे बड़ी उपलब्धि यही है।
भूगोल और आप का मौजूदा अंक ‘सरकारी बजटिंग’ को समर्पित है जिसमें बजट की विभिन्न प्रक्रियाओं को समेटने का प्रयत्न किया गया है।
इसके अतिरिक्त हाल में चर्चित विभिन्न मुद्दों को भी आलेख के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यूनिवर्सल बेसिक इनकम, मेघालय की रैट होल माइनिंग, कृषि कर्ज मॉफी की तर्कसंगतता, न्यूनतम समर्थन मूल्य, ड्रिप सिंचाई जैसे टॉपिक काफी ज्वलंत हैं। आशा है कि आपको यह अंक पसंद आएगा।