डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद

कार्यकारी संपादक,

निदेशक,
परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट

आज देश की गति व प्रगति को आधार प्रदान करने में जिन अवसंरचनाओं ने महत्ती भूमिका निभायी हैं, उनमें ऊर्जा यदि सर्वोपरि नहीं हो सर्वोपरि से कम भी नहीं है। यदि आज भारत विश्व की छठी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था है तो इसे संभव बनाने में ऊर्जा का भी बड़ा योगदान है। वैसे कहा भी जाता है कि आर्थिक गतिविधियों में विकास के साथ ऊर्जा के उपयोग में भी बढ़ोतरी होती जाती है क्योंकि आबादी की समृद्धि के साथ वस्तुओं एवं सेवाओं के उत्पादन भी बढ़ जाते हैं। स्वतंत्रता वर्ष (31 दिसंबर 1947) में भारत में विद्युत की कुल स्थापित क्षमता महज 1362 मेगावाट थी जो जनवरी 2019 में बढ़कर 349288 मेगावाट हो गई। विद्युत की स्थापित क्षमता में वृद्धि के साथ ही प्रतिव्यक्ति विद्युत मांग में भी व्यापक वृद्धि हुयी है। 31 दिसंबर, 1947 के दिन भारत में प्रतिव्यक्ति विद्युत की मांग 16 किलोवाट घंटा ज्ञॅीद्ध थी जो 2017-18 में बढ़कर 1149 किलोवाट घंटा हो गयी। हालांकि अभी भी यह वैश्विक औसत 3127 ज्ञॅी (2014) से काफी कम है। लेकिन आर्थिक विकास के साथ औसत में बढ़ोतरी होगी ही। यह भारत के लिए खुशी की बात है परंतु कुछ चिंताएं भी हैं जिन्हें हम नजरंदाज नहीं कर सकते। जैसे कि सरकार की नजर में भारत विद्युत का निर्यातक हो गया है और देश के अंतिम गांव तक बिजली पहुंचा दी गई है, पर हकीकत कुछ और भी है। जिन गांवों में बिजली पहुंचा दी गई है वहां अभी भी कई परिवारों तक, खासकर वंचित वर्गों तक इसकी पहुंच संभव नहीं हो सकी है। यदि विकास ‘समावेशी’ करनी है और ‘सबका साथ सबका विकास’ शासन का मूल नारा हो तो अपवंचना, भले ही वह किसी भी स्तर पर हो, को दूर करना प्राथमिकता होनी चाहिए। इस दिशा में व्यापक तौर पर सोचने की जरूरत है। दूसरी चिंता ऊर्जा के स्रोत के स्तर पर है। अभी भी हम अपनी अधिकांश ऊर्जा जरूरतें परंपरागत स्रोतों से पूरी करते हैं जिसके भंडार सीमित हैं। सबसे बड़ी चौंकाने वाली बात यह है कि आज भी हम अपनी जरूरत का 84 प्रतिशत तेल आयात करते हैं जो हमारी वित्तीय बोझ का एक बड़ा हिस्सा है। सच तो यह है कि, तेल आयात पर अधिक निर्भरता न केवल आर्थिक तौर पर हमें कमजोर करता है वरन् कई मौकों पर सामरिक दृष्टिकोण से भी हमे दुविधा की स्थिति में ला खड़ा कर देती है। ईरान से तेल आयात पर अमेरिकी प्रतिबंध इसका एक हालिया एवं अति प्रासंगिक उदाहरण है। परंपरागत ऊर्जा पर अधिक निर्भरता के चलते हमें पर्यावरणीय कीमत अलग चुकानी पड़ती है। 
खुशी की बात यह है कि भारत में गैर-परंपरागत ऊर्जा स्रोतों पर निर्भरता बढ़ाने के लिए सरकार द्वारा व्यापक प्रयास किए जा रहे हैं। इसके लिए सरकारी स्तर पर प्रोत्साहन भी दिया जा रहा है। वर्ष 2022 तक गैर-परंपरागत स्रोतों से 175 गीगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य रखा गया है जिसमें 100 गीगावाट सौर ऊर्जा से प्राप्त की जानी है। पेरिस जलवायु परिवर्तन समझौता के पूर्व भारत ने जो अपनी बचनवद्धता (आईएनडीसी) सौंपी है उसमें वर्ष 2030 तक गैर-जीवाष्म स्रोतों से 40 प्रतिशत ऊर्जा प्राप्ति का लक्ष्य रखा गया है। आशा है कि इन उपायों से भारत के ऊर्जा परिदृश्य को ‘स्वच्छ’ व ‘दक्ष’ बनाने में मदद मिलेगी।
‘भूगोल और आप’ के इस अंक में भारत के ऊर्जा परिदृश्य पर विशेष सामग्री दी गई है। इसके अलावा कई अन्य सामयिक भौगोलिक, आर्थिक व पर्यावरणीय पहलुओं को भी समेटने का प्रयास किया गया है। आशा है कि यह अंक आपको पसंद आएगी।