सुलग्ना चट्टोपाध्याय
संस्थापक संपादक,
भूगोल और आप,
नई दिल्ली
पृथ्वी के क्रायोस्फीयर के लिए वैश्विक सहयोग
विश्व एक विचित्र स्थान है। हम अपनी चमकीली तीव्र धूप और लंबे हरे पेड़ों पर अपना स्वयं सिद्ध अधिकार मानते हैं। कल्पना कीजिए कि हम ठंडे बंजर और अंधेरे स्थान में रह रहे हैं जो पूरी तरह धुंध से ढंका हुआ हो और जहाँ घास की एक पत्ती भी न हो पेड़ों की तो बात छोड़ दें। मैं एक स्कैन्डिनेवियाई वैज्ञानिक के एक कथन को याद करना चाहूँगी जो उच्च आर्कटिक में कार्यरत थे –“मैं आपके सूखे राजस्थान को भी इतना हरा-भरा पाता हूँ”, उन्होंने कहा था। आज यकीनन हम एक लंबा सफर तय कर चुके हैं और ध्रुवीय अनुसंधान के क्षेत्र में काफी कुछ करने का गर्वपूर्ण दावा कर सकते हैं। भूगोल और हम का यह अंक इंडिया की अत्यंत ऊंची सक्षमता को समर्पित है।
तथापि, अपने निकट ही हिन्दुकुश – हिमालयी क्षेत्र जिसे तृतीय ध्रुव कहते हैं, के ग्लैसिएटेड क्षेत्रों पर अपेक्षाकृत अधिक सहयोग और संकेन्द्रित विश्वस्तरीय कार्रवाई किए जाने की आवश्यकता है। 8 देशों में फैले और एक बड़ी जनसंख्या वाला यह क्षेत्र तेजी से बढ़ रहे दुखद जल वैज्ञानिक आपदाओं का शिकार हो रहा है, हिमधाव, बादल फटने की घटनाएं और भू-स्खलन बदकिस्मत लोगों को निरन्तर अपना शिकार बना रहे हैं। वास्तव में पिछले 5 से 6 दशकों में अत्यंत ऊष्ण घटनाओं की प्रवृत्ति में लगातार वृद्धि देखी गई है1। यह क्षेत्र एशिया की 10 बड़ी नदियों का उद्गम स्थल भी है जो लगभग 1.9 बिलियन लोगों को जल, भोजन, ऊर्जा उपलब्ध कराता है1। यह अत्यंत विस्मयकारी है कि इसके महत्व के बावजूद हिन्दुकुश-हिमालय क्षेत्र में किसी बहु-देशीय वैज्ञानिक मंच का कोई प्रतिनिधित्व नहीं है जिससे संबंधित प्रेक्षण और जलवायु परिवर्तन को कम करने संबंधी विचारों का आदान-प्रदान किया जा सके। हिन्दुकुश-हिमालयी क्षेत्र की आवश्यकताएं और चिंताएं सीमाओं से परे हैं। रोचक तथ्य यह है कि अकेले चीन में इस क्षेत्र के 49 प्रतिशत2 हिमनद स्थित हैं।
भारत का हित अब त्रिध्रुवीय क्षेत्रों में फैल गया है। ऐसी बहुत कम चीजों जिनपर आधुनिक भारत गर्व कर सकता है, में निश्चित रूप से यह शामिल है। इस प्रकार भूगोल और हम का प्रयास है कि आपको इस अत्यंत विशेष अंक में नव नामित राष्ट्रीय ध्रुवीय और सागर क्षेत्र केन्द्र, गोवा के बारे में जानकारी उपलब्ध कराएं।
आपका अध्ययन सुखद हो।