डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद

कार्यकारी संपादक,

निदेशक,
परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट

हम बचपन से भूगोल की किताबों में पढ़ते रहे हैं कि जमीन रबर नहीं है जिसे दोनां हाथों से खींचकर बड़ा कर सकें। यह एक सीमित संसाधन है जिसे हम किसी भी कीमत पर नहीं खो सकते। पृथ्वी पर यह जीवन की आधार प्रणाली है। इसको खोने का मतलब है धीरे-धीरे जीवन को खोना। परंतु दुख की बात यह है कि आज विभिन्न प्राकृतिक व मानवीय कारकों की वजह से पृथ्वी का बड़ा हिस्सा प्रतिवर्ष क्षरण व मरुस्थलीकरण का शिकार होता जा रहा है। यूएन की एक डेटा के मुताबिक भू-क्षरण यानी लैंड डिग्रेडेशन प्रतिवर्ष 490 अरब डॉलर का नुकसान कर रहा है और स्विटजरलैंड के आकार का तीन गुणा क्षेत्र प्रतिवर्ष समाप्त होता जा रहा है। सच तो यह है कि आज जमीन पर कापफी बोझ है और बढ़ती तथा विकसित होती आबादी की वजह से यह बोझ बढ़ने ही वाला है। आज विश्व के 170 देश मरुस्थलीकरण, भू-क्षरण या सूखा का सामना कर रहे हैं। दावाग्नि, हीटवेव, बड़ी आबादी का प्रवासन, अकस्मात बाढ़, समुद्री जल स्तर में वृद्धि, खाद्य व जल असुरक्षा को प्रत्यक्ष तौर पर देखा जा रहा है। इसरो स्पेश एप्लिकेशन सेंटर द्वारा वर्ष 2016 में भारत में लैंड डिग्रेडेशन पर प्रकाशित एटलस के मुताबिक देश में 96.40 मिलियन हैक्टेयर भूमि (2011-13) भू-क्षरण की प्रक्रिया से गुजर रही है जो कुल भौगोलिक क्षेत्रा का 29.32 प्रतिशत है। विश्व की दूसरी सर्वाध्कि आबादी वाले देश के लिए यह एक बड़ी चिंता का विषय है। ऐसे में हमारे समक्ष चुनौती भू-संसाधन के संरक्षण के साथ-साथ डिग्रेडेड व मरुस्थल हो गई जमीन को वापस लाने की है जिसमें सतत विकास लक्ष्य व दिल्ली घोषणापत्रा 2019 महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती हैं। इन दोनों में 2030 तक ‘भूमि क्षरण तटस्थता’ (लैंड डिग्रेडेशन न्यूट्रैलिटी) प्राप्त करने का लक्ष्य रखा गया है।

प्रधनमंत्रा श्री नरेंद्र मोदी ने मरुस्थलीकरण नियंत्राण पर यूएन कंवेंशन ;यूएनसीसीडीद्ध की कोप-14 बैठक को संबोध्ति करते हुए वर्ष 2030 तक भारत में 26 मिलियन हैक्टेयर डिग्रेडेड जमीन की पुनः प्राप्ति का लक्ष्य निर्धरित किया जो पहले के 21 मिलियन हैक्टेयर लक्ष्य से अध्कि है। यह एक स्वागतयोग्य कदम है। लक्ष्य प्राप्त भी किया जा सकता है। हमारे समक्ष अप्रफीका के साहेल क्षेत्रा का बेहतर उदाहरण है जहां ‘किसान प्रबंध्ति प्राकृतिक पुनर्सृजन’ कार्यक्रम के तहत 5 मिलियन हैक्टेयर डिग्रेडेड जमीन को वापस प्राप्त कर लिया गया है। प्रतिवर्ष लगभग 5 लाख टन का अनाज उपजाकर यह उपलब्धि् हासिल की गई है। भारत में सरकार द्वारा कई योजनाओं का क्रियान्वयन किया जा रहा है। यूएनसीसीडी सम्मेलन के माध्यम से भारत में भू-क्षरण पर कापफी जागरूकता आयी है। हमारे समक्ष सुअवसर है जमीन की पुनः प्राप्ति की जिससे हमें नहीं चूकना चाहिए।  

वैसे इसी माह हम विज्ञान के क्षेत्रा में इतिहास बनाने से जरूर चूक गए। 7 सितंबर, 2019 को पूरा भारत लैंडर विक्रम के चंद्रमा को स्पर्श करने के पल को टीवी पर लाइव देख रहा था। परंतु पृथ्वी से चंद्रमा के बीच 3,84,000 किलोमीटर की दूरी में से 3,83,998 किलोमीटर तय करने के बाद महज चंद्रमा से 2.1 किलोमीटर दूरी पर ही पृथ्वी से इसका संपर्क टूट गया। वैसे सॉफ्रट लैंडिंग की विपफलता को चंद्रयान-2 की विपफलता हम नहीं कह सकते क्योंकि इस मिशन का 95 प्रतिशत काम ऑर्बिटर को करना है जो अभी भी चंद्रमा का चक्कर लगा रहा है और इसरो की मानें तो यह अगले सात वर्षों तक चक्कर लगाता रहेगा। यदि सॉफ्रट लैंडिंग में इसरो को सपफलता मिली होती तो चंद्रमा पर उतरने वाला भारत चौथा देश होता। बहरहाल, इसरो के समक्ष इस झटके से बाहर निकलकर ‘गगनयान’ को सपफल बनाने की चुनौती है जो एक मानव युक्त मिशन है। आशा है कि इसरो विक्रम झटके से उबरकर गगनयान के द्वारा आकाश को छूएगा।

इस अंक में पाठकों का ध्यान रखते हुए मरुस्थलीकरण, विलवणीकरण, सिंगल यूज प्लास्टिक, आमेजन वर्षा वन, हड़प्पा सभ्यता का नया विश्लेषण विषयों पर सामग्री प्रकाशित की गई हैं।

आशा है ‘भूगोल और आप’ का यह अंक आपको पसंद आएगा।

ध्न्यवाद!