डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद
कार्यकारी संपादक,
निदेशक,
परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट
मोदी सरकार-2 की महिला वित्त मंत्री श्रीमती निर्मला सीतारमण ने 5 जुलाई, 2019 को आम बजट प्रस्तुत किया, और एक दिन पहले वित्त वर्ष 2018-19 की आर्थिक समीक्षा प्रस्तुत की गई। जहां आम बजट की कई घोषणाओं में केवल दो घोषणाएं कि सॉवरिन बॉण्ड के जरिये भारत सरकार ओवरसीज कर्ज लेगी और धनाढ़्य लोगों को बढ़ा हुआ कर्ज देना पड़ेगा, छायी रही, वहीं आर्थिक समीक्षा में भारत को 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने तथा व्यवहार परिवर्तन या नज थ्योरी के जरिये विकास का मार्ग चुनने पर बल दिया गया था। जहां तक विदेशी बाजार से सरकार द्वारा उधार लेने की बात है तो यह स्पष्ट संकेत है कि घरेलू बाजार से संसाधन उगाही में सीमाएं आ रही हैं और सरकार को विकास बनाए रखने और बढ़ाने के लिए विदेशी स्रोतों की ओर देखना पड़ रहा है। हालांकि बजट में वित्त मंत्री ने तर्क दिया है कि भारत का सॉवरिन बाह्य कर्ज जीडीपी का 5 प्रतिशत से कम है जो वैश्विक औसत के दृष्टिकोण से कम है। वैसे यदि भारत सरकार बजट घोषणा के अनुरूप कदम रखती है, तो सॉवरिन बाण्ड जारी करने वाला भारत विश्व का पहला देश नहीं होगा, कई देश घरेलू अर्थव्यवस्था को चलायमान बनाये रखने के लिए विदेशों से सरकारी स्तर पर कर्ज लेता रहा है। परंतु सॉवरिन बॉण्ड जारी करने के अपने खतरे हैं। जैसै कि घरेलू मुद्रा यदि कमजोर होता है तो उस कर्ज को चुकाना मुश्किल भी हो सकता है जैसा कि कई दक्षिण अमेरिकी देशों में देखा गया। इसी प्रकार भारत की अर्थव्यवस्था को वैश्विक वोलैटिलिटी का हर समय सामना करना पड़ेगा। तीसरी बात यह कि इससे विदेशी मुद्रा भंडार में बढ़ोतरी होगी जिससे रुपया मजबूत होगा और निर्यातक प्रभावित होंगे। चौथी बात यह कि संकट से निपटने के लिए मुद्रास्फीतिक उपाय भी सरकार नहीं कर सकती। यही वजह है कि कई आर्थिक विश्लेषकों ने सरकार को सॉवरिन बॉण्ड जारी करने से पूर्व सावधानी बरतने का सलाह दिया है। जहां तक सर्वाधिक धनियों पर कर बढ़ाने की बात है तो यह 42.7 प्रतिशत प्रभावी कर दिया गया है जो अमेरिका के 40 प्रतिशत से अधिक है। उल्लेखनीय है कि हाल ही में अमेरिका के खरबपतियों ने अत्यधिक समृद्ध लोगों पर कर लगाने को नैतिक व आर्थिक जिम्मेदारी बताया था। ऐसा प्रतीत होता है कि अमेरिकी अरबपतियों की इस अपील का सर्वाधिक प्रभाव भारत पर ही पड़ा है जिसकी झलक बजट में दिखाई पड़ी।
सरकार गठन के पश्चात नीति आयोग की बैठक में प्रधानमंत्री ने भारत को 2024-25 तक 5 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनाने के लक्ष्य की घोषणा की थी। आर्थिक समीक्षा में इसे असंभव नहीं बताया गया है परंतु इस लक्ष्य तक पहुंचने के लिए औसतन आठ प्रतिशत की वार्षिक विकास दर हासिल करने की बात जरूर कही गई है। भारत सरकार के मुख्य आर्थिक सलाहकार के मुताबिक यह लक्ष्य यथार्थवादी इसलिए है क्योंकि 2.7 ट्रिलियन डॉलर में से जहां 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में भारत को 55 साल लगे, वहीं शेष 1.7 ट्रिलियन डॉलर 2014-19, यानी पांच वर्षों की अवधि में ही प्राप्त हुआ। वैसे हम यदि 2024-25 तक 5 ट्रिलियन डॉलर का लक्ष्य प्राप्त कर भी लेते हैं तो इसे हम बहुत बड़ी उपलब्धि नहीं कहेंगे, खासकर जब हमारा विशाल पड़ोसी चीन की अर्थव्यवस्था अभी ही 12 ट्रिलियन डॉलर से अधिक की है। आर्थिक समीक्षा में ही कई सामाजिक परिवर्तन लाने में ‘व्यवहार परिवर्तन’ की भूमिका को भी रेखांकित किया गया है और रिचर्ड थैलर की नज थ्योरी की चर्चा की गई है। बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ, स्वच्छ भारत मिशन व सब्सिडी छोड़ने में व्यवहार परिवर्तन की भूमिका का विशेष तौर पर जिक्र है। भूगोल और आप के इस अंक में आर्थिक समीक्षा के इन मुद्दों को ही विशेष तौर पर डेटा सहित उठाया गया है जिसका अध्ययन लाभप्रद है। इसके अलावा मुक्त व्यापार समझौता एवं ट्रेड ब्लॉक भी आज काफी प्रासंगिक टॉपिक है। आरसीईपी पर आसियान देशों एवं भारत की निरंतर वार्ता इसी द्योतक है। इसी के मद्देनजर इस विषय पर भी इस अंक में विशेष सामग्री प्रस्तुत की गई है।
आशा है भूगोल और आप का यह आर्थिक विशेषांक आपको जरूर पसंद आएगा।