डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद
कार्यकारी संपादक,
निदेशक,
परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट
हिंदी में एक मुहावरा है ‘सिर से पानी गुजरना’। यदि हम इसके भावार्थ पर न जाकर इसके शब्दों पर जाएं तो पानी की स्थिति को देखते हुए जल्द ही हमें एक नया मुहावरा ढ़ूंढ़ना पड़ेगा ‘पैर के नीचे से पानी गायब होना‘। आज देश में जल के जो हालात हैं उसके लिए गढ़े गए इस नए मुहावरे के शब्द स्पष्ट रूप से बयां कर देते हैं। हाल ही में नीति आयोग द्वारा जल प्रबंधन पर जो सूचकांक जारी किया गया है उसमें कहा गया है कि भारत अब तक के सबसे बड़ा जल संकट की दौर से गुजर रहा है। वर्तमान में भारत की 60 करोड़ आबादी उच्च से गहन जल दबाव में जीने को मजबूर है और सुरक्षित जल अपर्याप्त पहुंच के कारण प्रतिवर्ष दो लाख लोगों की मौत हो रही है। सूचकांक में यह भी कहा गया है कि वर्ष 2020 तक देश के 21 बड़े शहरों का भूजल गायब हो जाने का अनुमान है जिससे वहां रहने वाली 10 करोड़ आबादी प्रभावित होगी। इन आंकड़ों को हमें महज आंकड़ा समझने की भूल नहीं करनी चाहिए। यह विशाल भावी संकट के उपस्थित होने का आभास दे रहा है और शिमला का जल संकट इसका प्रमाण भी है। पर यह स्थिति केवल भारत तक ही सीमित नहीं है। विश्व के कई अन्य देशों पर भी जल संकट मुंह बाए खड़ा है। दक्षिण अफ्रीका के केपटाउन शहर में डे जीरो का खतरा पैदा होना इसी ओर इशारा करता है। वस्तुतः इस संकट का मूल कारण मानव ही है जिसने कभी पर्याप्त मात्रा में ंउपलब्ध जल संसाधन का अति दोहन कर मौजूदा संकट की स्थिति पैदा किया। ऐसे में इस संकट से निकलने व जल संसाधन की सततता बनाए रखने की जिम्मेदारी भी मानव के पास ही है। इसके लिए हमें विभिन्न विकल्पों पर विचार करने की जरूरत है। जहां जल का अत्यधिक दोहन हो रहा हो वहां उसके कुशल उपयोग को बढ़ाकर जल उत्पादकता बढ़ाने की जरूरत है तो दूसरी ओर बेकार हो जा रहे ग्रे वाटर शोधन के उपरांत पुनः उपयोग का तरीका अपनाने की आवश्यकता है। ‘भूगोल और आप’ के इस अंक में इन पर सविस्तार चर्चा की गई है।
जल संकट व उसके समाधान के अलावा इस अंक में भारत सरकार की विभिन्न योजनाओं एवं कार्यक्रमों पर विशेष सामग्री प्रस्तुत की गईं हैं। दरअसल आज की प्रतियोगिता परीक्षाओं, विशेषकर आईएएस एवं पीसीएस परीक्षाओं में सामान्य अध्ययन के तहत सरकार की योजनाओं पर अधिकाधिक प्रश्न पूछे जाने लगे हैं। ऐसे में इनसे सुपरिचित होना जरूरी है। वैसे ये योजनाएं एवं कार्यक्रम अन्य पाठकों के लिए भी समान रूप से उपयोगी हैं।
इसी अंक में भारत में सिविल सेवा परीक्षा के विकासक्रम को भी आलेख के माध्यम से प्रस्तुत किया गया है। स्वतंत्रता के पश्चात से सिविल सेवा परीक्षा प्रणाली में समय-समय पर बदलाव होते रहे हैं और ये बदलाव समसामयिकता के परिप्रेक्ष्य में किए जाते रहे हैं। इन सभी बदलावों को आलेख में समटने की कोशिश की गई है।
हमें आशा है कि उपर्युक्त विशेषताओं से युक्त ‘भूगोल और आप’ का यह अंक आपको पसंद आएगा।
लेखकों से आलेख आमंत्रण
लेखकों से ‘भूगोल और आप’ मासिक पत्रिका के लिए समकालीन विषयों पर आलेख सादर आमंत्रित हैं। आलेख के संदर्भ में निम्नलिखित का ध्यान रखेंः
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भूल सुधारः
भूगोल और आप के मई 2018 अंक में आलेख ‘चाय बागान मशीनीकरण’ में पृष्ठ संख्या 13 पर ‘विश्व चाय उत्पादन’ और ‘विश्व चाय निर्यात’ में मिलियन टन की जगह मीट्रिक टन पढ़ें। साथ ही विश्व में चाय उत्पादन शीर्षक में वर्ष 2015 में चीन का उत्पादन 2248999 पढ़ें।