डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद

कार्यकारी संपादक,

निदेशक,
परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट

हमारे प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने वर्ष 2022 तक किसानों की आय को दोगुना करने का लक्ष्य निर्धारित किया है। इस लक्ष्य की प्राप्ति में महज चार वर्ष बचे हैं। वित्त मंत्री द्वारा प्रस्तुत आर्थिक समीक्षा 2017-18 में किसानों की आय दोगुना करने की बात तो दूर, इसमें गिरावट के संकेत दिए गए हैं। आर्थिक समीक्षा के अनुसार ‘जलवायु परिवर्तन के कारण किसानों की आय में 15 से 18 प्रतिशत का नुकसान हो सकती है और गैर-सिंचित क्षेत्रों में तो यह 20 से 25 प्रतिशत के बीच होगी।’ समीक्षा में यह भी कहा गया कि किसानों द्वारा किसी अनुकूलन उपायों के अभाव में या किसी प्रकार के नीतिगत परिवर्तनों के बिना आने वाले वर्षों में किसानों की आय में 12 प्रतिशत की दर से कमी आएगी। अनुकूलन उपाय एवं नीतिगत परिवर्तन सततता को बनाए रखने के लिए आवश्यक होगी परंतु किसानों की आय में वृद्धि में के लिए कई अन्य उपायों की ओर भी निर्भरता बढ़ाने की जरूरत है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग एक ऐसा ही विकल्प है जो किसानों की आय वृद्धि में महत्ती भूमिका निभा सकता है। यह उद्योग वस्तुतः कृषि एवं विनिर्माण के बीच संपर्क स्थापित करता है और किसानों को अर्थव्यवस्था के द्वितीयक क्षेत्रक के लाभों से जोड़ता है। भारत सरकार द्वारा आईसीएआर-सेंट्रल इंस्टीट्यूट ऑफ पोस्ट हार्वेस्ट इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी के माध्यम से कराए गए अध्ययन के अनुसार फसल कटाई एवं फसल कटाई उपरांत फसलों के नुकसान का वार्षिक मूल्य 92,651 करोड़ रुपए (2014 के थोक मूल्य पर 2012-13 के उत्पादन डेटा का उपयोग करते हुए) है। खाद्य प्रसंस्करण उद्योग को बढ़ावा देने से न केवल फसलों की बर्बादी रूकेगी वरन् इससे किसानों को उनके फसल का उचित मूल्य भी मिल सकता है, उनकी आय में वृद्धि हो सकती है और रोजगार के अवसर भी सृजित होंगे। हालांकि सरकार द्वारा इस दिशा में कई प्रयास जरूर किए गए हैं, जैसे कि फूड पार्क स्कीम आरंभ करना, किसान संपदा योजना की घोषणा करना, इंटीग्रेटेड कोल्ड चेन स्कीम इत्यादि। परंतु अभी तक इनके प्रभावी परिणाम नहीं दिख रहे हैं। अवसंरचना की कमी पहले भी समस्या रही है और आज भी बड़ी समस्या है। साथ ही उत्पाद की गुणवत्ता में भी सुधार की मांग की जाती रही है। मेक इन इंडिया पहल के तहत इसे प्रायोरिटी सेक्टर में शामिल किया गया है और क्रेडिट उपलब्धता भी आसान बनाने की कोशिश की जा रही है। परंतु जब तक अवसंरचना विकास के स्तर पर पर्याप्त प्रयास नहीं किए जाते अपेक्षित परिणाम मिलना मुश्किल है।

खाद्य प्रसंस्करण की तरह ही अत्याधुनिक प्रौद्योगिकियों के इस्तेमाल से भी कृषि आय व कृषकों की आय में बढ़ोतरी की जा सकती है। रिमोट सेंसिंग व जीआईएस ऐसी ही प्रौद्योगिकियां हैं जो प्राकृतिक संसाधन के प्रबंधन में विभिन्न स्तरों पर अपनी भूमिका निभा रही है। भू-उपयोग, भू-संसाधन, जल उपलब्धता, फसल रकबा अनुमान में भी जियोस्पैटियल तकनीक महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। जीआईएस से वाटरशेड प्रबंधन,  भूमि प्रबंधन, मृदा प्रबंधन में अच्छी मदद मिलती है।

‘भूगोल और आप’ के इस अंक में उपर्युक्त दोनों विषयों खाद्य प्रसंस्करण तथा रिमोट सेंसिंग व जीआईएस पर विशेष सामग्री प्रस्तुत की गईं हैं। इनके अलावा भी कई अन्य महत्वपूर्ण टॉपिक्स को कवर किया गया है जो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले छात्रों के लिए विशेष रूप से उपयोगी हैं।