डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद

कार्यकारी संपादक,

निदेशक,
परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट

‘मानव की जरूरतों की पूर्ति के लिए पृथ्वी पर्याप्त है परंतु प्रत्येक व्यक्ति के लालच के लिए नही।’ महात्मा गांधी के ये शब्द तब भी उतने ही प्रासंगिक थे जितने की आज। सच तो यह है कि मौजूदा दौर में ये शब्द कहीं अधिक प्रासंगिक प्रतीत होते हैं, खासकर जब हम तमिलनाडु के तूतीकोरिन में स्टरलाइट प्लांट के घटनाक्रम पर अवलोकन करते हैं।  विरोध-प्रदर्शन में जिन लोगों की मौत हो गई, वे विकास विरोधी नहीं थे, न ही वे समुदाय, समाज या राष्ट्र विरोधी थे। वे महज किसी की लालच का विरोध कर रहे थे। हां यह जरूर है कि उकसावे में जन समूह का हिंसक होना भी किसी दृष्टिकोण से उचित नहीं कहा जा सकता। आज सभी एक-दूसरे पर दोषारोपण कर रहे हैं और खुद को सबसे बड़ा पर्यावरण हितैषी व मानव हितैषी सिद्ध करने की होड़ में लगे हैं जिससे उनका अपना हित साधन हो रहा है। इस क्रम में कुछ अन्य मुद्दे भी हैं जिन पर गंभीरता से विचार किया जाना जरूरी है। जैसे कि आज जो तमिलनाडु प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड इस प्लांट को बंद करने का आदेश दिया है, उसी ने कभी उस प्लांट की अनुमति भी दी थी। समय-समय पर विभिन्न सरकारें भी इसे पर्यावरणीय अनुमति प्रदान करती रही हैं।  फिर उन लोगों का क्या जो इस प्लांट में प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तौर पर नियोजित थे जिनके पारिश्रमिक पर उनका पूरा परिवार निर्भर है? वे अब कहां जाएंगे? वस्तुतः आज जो घटनाक्रम हमारे समक्ष हैं उसके लिए किसी एक पक्ष को दोषी नहीं ठहराया जा सकता। इसमें कंपनी के साथ-साथ, विभिन्न सरकारें, सरकारी एजेंसियां, कतिपय स्थानीय संगठनों की भूमिका भी संदेहास्पद है। विकास जरूरी है, परंतु उसको आधार प्रदान करने वाले पर्यावरण की शर्त पर नहीं। तूकीकोरिन घटना से हमें सबक लेने की जरूरत है। हिंसक विरोध-प्रदर्शन के आलोक में आनन-फानन में संयंत्र को बंद कर देना तात्कालिक समाधान हो सकता है परंतु यह समस्या का वास्तविक समाधान नहीं है। 13 लोगों की मौत, तिस पर हजारों लोगों का बेरोजगार हो जाना न तो औद्योगिक न्याय है न ही लोक न्याय है और न ही पर्यावरण न्याय।

जब हम पर्यावरण न्याय की बात कर रहे हैं तो 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस का मेजबान देश के नागरिक होने के नाते विश्व पर्यावरण दिवस को हम नहीं भूल सकते। विश्व पर्यावरण प्रदर्शन सूचकांक 2018 में हमारी रैंकिंग 177वीं हैं। सबसे खराब प्रदर्शन करने वाले विश्व के पांच देशों में भारत शामिल है। यह तो हाल है हमारे यहां पर्यावरण सुरक्षा एवं संरक्षण का। पर्यावरण दिवस के मेजबान देश के नागरिक होने के नाते हमारा भी कुछ कर्तव्य बनता है की इस पर्यावरण को स्वच्छ रखे ताकि यह सतत बना रहे। गैर-बायोडिग्रेडेब्ल अपशिष्टों का कम से कम प्रयोग करें। अपशिष्ट को हम रोक नहीं सकते परंतु उसके बेहतर प्रबंधन तो कर ही सकते हैं ताकि आसपास के पर्यावरण को यह दूषित नहीं करे। 

ऊपर जिन मुद्दों पर चर्चा की गईं हैं उन्हें ‘भूगोल एवं आप’ के इस अंक में विस्तार से विश्लेषणात्मक एवं तथ्यात्मक रूप से प्रस्तुत की गईं हैं। इनके अलावा समसामयिक भौगोलिक, पर्यावरणीय, आर्थिक एवं सामारिक मुद्दों को भी आलेख एवं मासिक सामयिक घटनाक्रम के रूप में यथास्थान जगह दी गई हैं। इनके माध्यम से हम इस पत्रिका को और अधिक समसामयिक बनाने का प्रयास कर रहे हैं ताकि पाठकों, जिनमें शिक्षक, छात्र, परीक्षार्थी के साथ आम पाठक भी शामिल हैं, की प्रासंगिक जरूरतों को पूरा सके। आशा है यह अंक आपको पसंद आएगा।

धन्यवाद !