डॉ. नर्मदेश्वर प्रसाद
कार्यकारी संपादक,
निदेशक
परी ट्रेनिंग इन्सटीट्यूट
प्रिय पाठकों,
हिंदी के सुप्रसिद्ध कवि श्री जयशंकर प्रसाद ने कामायानी महाकाव्य में कहा है कि ‘दुख की पिछली रजनी बीच विकसता सुख का नवल प्रभात, एक परदा यह झीना नील छिपाये है जिसमें सुख गात।’ अर्थात दुख रूपी रात्रि की पृष्ठभूमि में ही सुख रूपी सुबह छिपी होती है। जिस तरह प्रत्येक रात्रि के पश्चात सुबह का आना तय है उसी तरह दुख के पश्चात भी सुख का आना भी तय है। हां, यह अलग बात है कि दुख रूपी रात्रि में धैर्य रखने की क्षमता सबमें नहीं होती। बहरहाल, भारत सहित पूरा विश्व भी पैंडेमिक रूपी रात्रि से बाहर आने का प्रयास कर रहा है। जीवन पटरी पर आनी आरंभ हो गई है। इसके संकेत भी दिख रहे हैं। परंतु यदि भारत की बात करें तो, इसे पटरी पर आने में काफी मशक्कत करनी पड़ेगी क्योंकि पैंडेमिक से पहले भी भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर रेखा दक्षिण की ओर अग्रसर थी। अंतरराष्ट्रीय मुद्रा कोष द्वारा जारी वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलूक की मानें तो वित्त वर्ष 2020-21 में भारतीय अर्थव्यवस्था की वृद्धि दर -10.3 प्रतिशत रहेगी जबकि वैश्विक वृद्धि दर -4.4 प्रतिशत रहेगी। यह चौंकाने वाली खबर तो है ही, खासकर इसलिए कि कुछ वर्ष पूर्व तक भारत, विश्व की सर्वाधिक आर्थिक वृद्धि दर वाली अर्थव्यवस्था थी। इस रिपोर्ट की एक खास बात है जिसने विश्लेषकों का ध्यान विशेष रूप से आकर्षित किया है। वह यह कि चालू वित्त वर्ष में भारत की 1877 डॉलर प्रतिव्यक्ति आय की तुलना में बांग्लादेश की प्रतिव्यक्ति आय 1888 डॉलर होगी। अर्थात प्रतिव्यक्ति आय के मामले में इस वर्ष बांग्लादेश, भारत से आगे होगा। हालांकि यह स्थिति कुछ समय के लिए ही रहने वाली है क्योंकि आईएमएफ ने आगामी वित्त वर्ष में भारत की आर्थिक वृद्धि दर 8.8 प्रतिशत अनुमानित किया है जो कि विश्व में सर्वाधिक होगी। यदि बांग्लादेश की बात करें तो भारत में सरकार के आलोचकों के लिए एक मौका हो सकता है सरकार की आर्थिक नीतियों की निंदा करने की, जो उचित भी है, परंतु यदि सामरिक स्तर पर देखें तो यह भारत के लिए बेहतर संकेत हो सकता है। कई सामरिक विश्लेषक मान रहे हैं कि दक्षिण एशिया की बात आती है तो केवल भारत एवं पाकिस्तान की ही चर्चा की जाती है और शेष देशों को अधिक महत्व नहीं दिया जाता है। वैश्विक विश्लेषक व नीति-निर्माता दक्षिण एशिया को पाकिस्तानी आतंकवाद, कश्मीर मसला, पाकिस्तानी सेना, अपफगानिस्तान-तालिबान, पाकिस्तानी परमाणु क्षमता इत्यादि के चश्मों से ही देखते रहे हैं। सार्क जैसे संगठन की विफलता भी इसी का परिणाम रही है। परंतु आर्थिक शक्ति के रूप में उभरता बांग्लादेश कुछ हद तक इस नजरिये में बदलाव ला सकता है। यह दिखना आरंभ भी हो गया है। अमेरिकी अधिकारियों के बांग्लादेश दौरे इसी ओर संकेत करते हैं। यह भारत के लिए भी सामरिक रूप से शुभ संकेत हो सकता है क्योंकि बांग्लादेश से भारत के बेहतर संबंध रहे हैं और भारत ने बांग्लादेश के साथ अध्किंश सीमा विवादों को सुलझा लिया है, सिवाय कुछ नदी जल विवादों को छोड़कर जो पश्चिम बंगाल की राजनीति के कारण संभव नहीं हो पा रहा है।
उपर्युक्त मिश्रित संकेतों के बीच एक और डेटा जो भारत के लिए गंभीर चिंतन का विषय है, वह है भारत में कुपोषण की स्थिति। ग्लोबल हंगर इंडेक्स 2020 में भारत कुपोषण की ‘गंभीर स्थिति’ वाले देशों में शामिल है। भारत अपने पड़ोसी देशों में केवल अफगानिस्तान से बेहतर है जो गृहयुद्ध से ग्रसित है। पाकिस्तान एवं बांग्लादेश में भी बच्चों का पोषण स्तर बेहतर है। इस सूचकांक में बच्चों में पोषण की स्थिति को अधिक बल दिया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार पांच वर्ष से कम उम्र में वेस्टेड बच्चे (लंबाई की तुलना में कम वजन) की भारत में सर्वाध्कि मौजूदगी है। ये डेटा हमारी सारी विकास योजनाओं के दावों की पोल खोल देती है। बाल स्वास्थ्य देखभाल के लिए आईसीडीएस ;समन्वित बाल विकास सेवाद्ध स्कीम वर्ष 1975 में आरंभ की गई थी और आज इसके 45 वर्ष हो चुके हैं। इध्र वर्ष 2017 में भारत सरकार ने पोषण अभियान भी आरंभ किये हैं तथा सितंबर माह को पोषण माह के रूप में भी मनाया जा रहा है। यदि तमाम पोषण योजनाओं के बावजूद कुपोषण एवं अल्पपोषण की स्थिति विकराल बनी हुयी है तो इसका मतलब है कि क्रियान्वयन के स्तर पर कहीं न कहीं गंभीर समस्या है। ऐसा इसलिए कि आज भारत खाद्यान्न के स्तर पर आत्मनिर्भर हो चुका है जिसका मतलब है कि खाद्यान्न उपलब्धता के स्तर पर समस्या नहीं है। समस्या है तो पहुंच के स्तर पर। यानी जरूरतमंदों तक इसकी पहुंच सुनिश्चित नहीं हो पा रही है। दूसरी ओर स्वच्छ पेयजल की कम आपूर्ति, शौचालय का अभाव व स्वच्छता पर अध्कि ध्यान नहीं देना जल जनित बीमारियों का आमंत्राण है जो गंभीर कुपोषण से प्रत्यक्ष स्तर पर जुड़ा हुआ है। भोजन में पर्याप्त सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी भी इसका कारण है। सूक्ष्म पोषक तत्वों की कमी की समस्या से निपटने के लिए हाल में प्रधनमंत्री ने 8 पफसलों के 17 बायोपफोर्टिपफायड किस्मों को लॉन्च किया है। जल जीवन मिशन भी आरंभ किया गया है जिसका लक्ष्य वर्ष 2024 तक सभी घरों में नल के जरिये जल की आपूर्ति सुनिश्चित करना है। वैसे जल शक्ति मंत्रालय यह जिम्मेदारी स्थानीय पंचायतों को देकर बेहतर क्रियान्वयन का अपेक्षा कर रहा है परंतु यह किसी से छिपा नहीं है कि कई राज्यों में पंचायतों की कार्य प्रणाली व सशक्तिकरण की स्थिति कैसी है। दूसरी बात यह कि घरों में नल लगा देने भर से समस्या का हल नहीं हो जाता, उसमें स्वच्छ जल की आपूर्ति भी जरूरी है।
जैसा कि पूर्व में मैंने कहा कि योजनाएं तो वर्ष 1975 से ही बनी हुयी हैं और धन आवंटन भी होते रहे हैं परंतु अपेक्षित परिणाम प्राप्त करने में सपफलता हासिल नहीं हुयी है। इसलिए जरूरी है तो क्रियान्वयन स्तर पर बल देने की। साथ ही आपूर्ति के साथ वास्तविक पहुंच पर भी रियल टाइम निगरानी की आवश्यकता है तभी हम सुपोषित भारत का सपना पूरा होते देख सकते हैं।
‘भूगोल और आप’ का यह संयुक्तांक आपको जरूर पसंद आएगा।