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उपलब्ध सर्वोत्तम प्रौद्योगिकीय तरीकों के प्रयोग के द्वारा ग्रामीण गरीबों की आर्थिक कमजोरी के न्यूनीकरण में ग्रामीण रोजगार सृजन महत्वपूर्ण प्रक्रिया है। महात्मा गांधी राष्ट््रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी एक्ट (एमजीएनआरईजीए) कानूनी बाध्यता वाली नागरिक लाभ योजना है जो उन सभी ग्रामीण परिवारों को आग्रह के 15 दिनों के भीतर मांग आधारित पारिश्रमिक रोजगार की गारंटी प्रदान करता है जिनके वयस्क सदस्य अकुशल शारीरिक कार्य करने को इच्छुक हैं। इस स्कीम के तहत पूरे देश में प्रतिवर्ष 30 लाख (3 मिलियन) आस्तियों का सृजन किया जाता है जिनमें शामिल हैं प्राथमिक गतिविधियों में वाटर हार्वेस्टिंग का निर्माण, सूखा राहत एवं बाढ़ नियंत्रण संरचनाओं का निर्माण इत्यादि। जियोएमजीएनआरईजीए मनरेगा के तहत प्रयुक्त वह भू-स्थानिक घटक (जियोस्पैटियल) है जिसमें अंतरिक्ष प्रौद्योगिकी आधारित नवाचार का इस्तेमाल उपग्रह चित्र डाटाबेस पर सृजित आस्तियों की अवस्थिति जानने, फिर सूचना का गुणवत्ता नियंत्रण और उसके पश्चात योजना के क्रियान्वयन में पारदर्शिता हेतु सृजित आस्तियों पर नागरिकों की राय जानने में किया जाता है।
उपग्रह सुदूर संवेदी आंकड़ा का उपयोग करते हुये फसल उत्पादन पूर्वानुमान अवधारणा अस्सी दशक के आरंभ में फसल उत्पादन पूर्वानुमान (सीपीएफ) परियोजना के तहत अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र अहमदाबाद (एसएसी) में विकसित की गई थी। इसकी सफलता ने कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय को देश के बड़े फसल उत्पादकों क्षेत्रों में फसलों के उत्पादन के पूर्वानुमान की दिशा में सीएपीई (फसल रकबा उत्पादन अनुमान) परियोजना के लिए प्रेरित किया। इस परियोजना के क्षेत्र विस्तार हेतु राष्ट्रीय स्तर पर बहु-मौसमीय फसल पूर्वानुमान के लिए कार्यप्रणाली विकसित कर ‘अंतरिक्ष, कृषि-मौसम विज्ञान व भू आधारित पर्यवेक्षण का प्रयोग करते हुये कृषि उत्पादन का कार्यक्रम की अवधारणा विकसित की गई। कृषि एवं कृषक कल्याण मंत्रालय द्वारा अप्रैल 2012 में नई दिल्ली में महालनोबिस राष्ट्रीय फसल पूर्वानुमान केंद्र (एमएनसीएफसी) स्थापित किया गया जिसने नौ कृषि फसलों के लिए राष्ट्रीय स्तर पर फसल कटाई से पूर्व बहु-फसल उत्पादन पूर्वानुमान हेतु अंतरिक्ष आधारित पर्यवेक्षण का प्रयोग करता है।
भू-स्थानिक प्रौद्योगिकी बागवानी विकास के विविध पहलुओं के लिए आगत (इनपुट) भी उपलब्ध कराता है, जिनमें अनुसंधान, विस्तार, उत्तर-फसल कटाई प्रबंधन इत्यादि शामिल हैं। सुदूर संवेदन, जीआईएस व संपार्श्विक क्षेत्र आंकड़ा का उपयोग करते हुये बेहतर बागवानी सूचीकरण एवं प्रबंधन के लिए (Coordinated Horticulture Assessment and Management using geoinfromatics-CHAMAN) नामक परियोजना आरंभ की गई।
परंपरागत तौर पर, सिंचाई आधारसंरचना सृजन की प्रगति निगरानी कुछ चयनित जगहों के क्षेत्र निरीक्षण के साथ-साथ क्रियान्वयक एजेंसियों द्वारा उपलब्ध कराये गये आगतों द्वारा संपन्न किया जाता है। सिंचाई आधारसंरचना निगरानी के लिए उच्च रिजोल्यूशन सुदूर संवेदन आंकड़ा की क्षमता के आधार पर , जैसा कि राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी) ने दर्शाया है, त्वरित सिंचाई लाभ कार्यक्रम के तहत 21 राज्यों में फैले, 6.45 मिलियन हैक्टेयर (एमएचए) सिंचाई क्षमता वाली 103 परियोजनाओं में सिंचाई आधारसंरचना सृजन मूल्यांकन के लिए कार्टोसैट उपग्रह डेटा के उपयोग का जिम्मा केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) को सौपा गया। इसके अलावा, भुवन-एआईबीपी वेब एप्लिकेशन, सिंचाई आधारसंरचना सृजन स्थिति निगरानी हेतु उपग्रहीय डेटा उपयोग का सामान्यीकरण भी विकसित किया गया। क्षमता निर्माण सक्षम सीडब्ल्यूसी ने भी आंतरिक स्तर पर एआईबीपी-भुवन ऑनलाइन निगरानी उपकरण का उपयोग करते हुये सिंचाई परियोजनाओं की निगरानी का कार्य किया।
राज्य के जल संसाधन प्रबंधन के लिए आवश्यक भू-स्थानिक सूचना संरचना के लिए बहु-स्रोत आगतों का उपयोग करते हुये भुवन पर कृषि व कमान क्षेत्र विकास (आई.सीएडी) विभाग, तेलंगाना सरकार के लिए एक समर्पित जियोपोर्टल, तेलंगाना जल संसाधन सूचना प्रणाली (टीडब्यूआरआईएस) विकसित की गई है। यह पोर्टल भूस्थानिक आंकड़ा सृजन, अवलोकन व विभिन्न स्रोतों से जल संसाधन आंकड़ों के समाकलन के लिए ऑनलाइन साधन व सहायता भी प्रदान करता है।
भारत एक महत्वपूर्ण मत्स्यन उत्पादक देश है। परंपरागत तौर पर, लाभकारी मछली पकड़ने हेतु, मछुआरों को विभिन्न क्षेत्रों में तलाश के लिए अत्यधिक समय गंवाना पड़ता है जिसमें कीमती ईंधन व समय बर्बाद होता है क्योंकि मत्स्य संसाधन स्थानिक व अस्थायी प्रकृति के विभिन्न पर्यावरणीय कारकों यथा-तापमान, खाद्य की उपलब्धता, धाराएं, पवन इत्यादि द्वारा प्रभावित होते हैं। सीमित दृश्यता के कारण मत्स्य पोत व्यापक स्तर पर पर्यावरणीय मानकों की गतिक प्रकृति को देखने में असमर्थ होते हैं जो कि मत्स्य संसाधनों के वितरण को प्रभावित करती है। हालांकि उपग्रह सुदूर संवेदन दिक् व काल में महासागर का परिदृश्यात्मक छवि उपलब्ध कराता है और यह मत्स्य जमाव के संभावित क्षेत्रों की संपरीक्षा व खोज के लिए आवश्यक सूचनाएं प्रदान करता है। इसी आलोक में, अंतरिक्ष अनुप्रयोग केंद्र (एसएसी) ने सुदूर संवेदन तकनीक का उपयोग करते हुये संभावित मत्स्यन जोन (पीएफजेड) की पहचान व पूर्वानुमान हेतु एक दृष्टिकोण की शुरुआत व विकसित किया और संचालकीय क्रियान्वयन हेतु इस प्रौद्योगिकी को भारतीय राष्ट्रीय महासागरीय सूचना सेवा केंद्र (आईएनसीओआईएस) को हस्तांतरित कर दिया।
भारत में कुशल वन अग्नि प्रबंधन उपग्रह जनित आगत उपलब्ध कराने हेतु राष्ट्रीय सुदूर संवेदन केंद्र (एनआरएससी), इसरो ने व्यापक जंगली आग अन्वेषण व निगरानी प्रणाली विकसित किया है। सक्रिय दवानल अवस्थिति तथा दग्ध क्षेत्रों के प्रसार का पता करने तथा आग लगने के संभावित क्षेत्रों के प्राथमिकीकरण के लिए क्षेत्रीय व राष्ट्रीय सांख्यिकी प्राप्ति हेतु, जंगलों की आग की अंतरा व अंतः मौसमीय स्थानिक-तापीय प्रणाली की निगरानी व विश्लेषण किया जाता है। सक्रिय अग्नि उत्पादों एवं दग्ध क्षेत्र उत्पादों को अग्नि शमन व प्रबंधन हेतु प्रयोक्ताओं (राज्य वन विभाग) और भारत के वन सर्वेक्षण (एफएसआई) को उपलब्ध करा दिया जाता है।
भारत, विश्व में बाढ़ से दूसरा सर्वाधिक पीड़ित देश है तथा गंगा, ब्रह्मपुत्र, महानदी एवं गोदावरी नदियों के नित्यवाही नदी बेसिन प्रतिवर्ष बाढ़ का सामना करते हैं। बाढ़ पूर्वानुमान, बाढ़ का वास्तविक समय जैसी निगरानी एवं बाढ़ क्षति अनुक्षेत्रण, बाढ़ क्षति शमन की व्यापक रूप से स्वीकार्य पद्धतियां हैं।
अनमैन्ड एरियल व्हीकल्स (यूएवी), जो ड्रोन के नाम से लोकप्रिय है, और सर्वाधिक होनहार एवं उदीयमान प्रौद्योगिकियों में से एक है, आपदा प्रत्युत्तर व राहत अभियानों में सुधार के लिए प्रयुक्त हो रहे हैं। सुदूर संवेदी प्रौद्योगिकी से युक्त यूएवी (UAV-RS) का जोखिम आकलन व निगरानी में प्रयोग बढ़ रहा है क्योंकि यह लोचकता व निम्न संचालकीय लागत पर शीघ्र तैनाती की सुविधा प्रदान करता है। इसी प्रकार सेंसर्स तथा डाटा के संग्रह व विनिमय के अनुप्रयोग से युक्त इंटरनेट ऑफ थिंग्स एक अन्य महत्वपूर्ण प्रौद्योगिकी है जो आपात प्रबंधन के लिए उत्कृष्ट सहायता प्रदान कर सकती है। आईओटी से समन्वित यूएवी (UAV-IoT) आपदाओं के समय आपदा प्रत्युत्तर प्रभाविता में सुधार ला सकती हैं। यह आलेख कुछ केस स्टडी को रेखांकित करते हुये आपदा प्रबंधन सहायता गतिविधि के लिए यूएवी की उपयोगिता को प्रस्तुत करता है। यूएवी का उपयोग करते हुये आपदा प्रबंधन सहायता के लिए आईओटी प्लेटफॉर्म पर मॉडल की अवधारणा विकसित की गई है और यहां प्रस्तुत की गई है।
स्ंरक्षण व प्राथमिकीकरण जैवविविधता का चरित्रांकन व परिमाणन की बड़ी चुनौतयों में से एक है। अभी तक भारत में स्थानिक पारिस्थितकीय डाटाबेस लगभग अस्तित्व में नहीं था। भूदर्श स्तर पर राष्ट्रीय जैवविविधता चरित्रांकन, जैव प्रौद्योगिकी विभाग (डीबीटी) एवं अंतरिक्ष विभाग (डीओएस) द्वारा संयुक्त रूप से प्रायोजित एक परियोजना, का क्रियान्वयन देश में जैवविविधता समृद्ध क्षेत्रों की पहचान व मानचित्रण के लिए किया गया। इस परियोजना ने तीन स्तरों पर स्थानिक सूचना सृजित किया है; उपग्रह आधारित प्राथमिक सूचना (वनस्पति प्रकार मानचित्र, सड़क और गांव की स्थानिक अवस्थिति अग्नि घटनाओं), भू-स्थानिक जनित या प्रतिरूपित सूचना (विक्षोभ सूचकांक, खंडीकरण एवं जैविक समृद्धि) एवं भू-स्थानिकी डिजाइन की हुयी स्तरीकरण प्रतिदर्श भू-खंड स्तर (-16500) पर। देश में भूदर्श स्तरीय जैवविविधता स्थानिक वितरण का चरित्रांकन के लिए आधार डाटा के रूप में सृजित एक विशिष्ट डाटा कोष है। संपूर्ण डाटाबेस को भू-दृश्यन, विश्लेषण, ऑनलाइन स्थानिक प्रतिरूपण व विविध उपयोगकर्ता समूह में डाटा प्रसारण के लिए ‘जैवविविधता सूचना प्रणाली' नामक वेब आधारित कोष में व्यवस्थित किया गया है।